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________________ (226) बीस अंककी दूसरी, गनती कहुं समझाय। सावधान है के सुनी, सब संस मिटि जाय // 10 // सोरठा। विजन हैं तेतीस, आदि ककार हकार लौं। स्वर हैं सत्ताईस, ह्रस्व पुलत दीरथ नमो // 11 // जोगवहा है चार, अं अः लख परगट वरन / चौसठ जैन मझार, आनमती भाखें कभी // 12 // दीरघ ऋल नहिं संसकृत, देस भापमैं जान / ए ऐ ओ औ इस्व ए, प्राकृत भापा मान // 13 // मूल वरन चौसठि कहे, अरु संजोग अनेक / ते अच्छर पुनरुक्त सव, परमागम यह टेक॥ एई चौसठ वरनकौं, भिन्न भिन्न करि राख / इक इक पर दो दो धरौ, गुनौ परस्पर साख // 15 // चौपई। पहले दो दुजे दो चार, तीजे दो गुन आठ निहार / चौथे सोलै पांच छतीस, छहे चौसठि कहे गनीस // 16 // मात गिनौ सौ अट्ठाईस, आ दो सै छप्पन दीस / इस बिध चौसठि लौंगिन सार, वीस अंक उपजै निरधार 17 . दोहा / इक वसु चौ चौ पट सपत, चौ चौ नभ सत तीन / सत नभ नौ पन पंच इक, पट इक पट गिन लीन // 18 // लीने थे दो एककै, पूरव गनती काज / सो या माहिं कमी करौ, यो भाख्यौ मुनिराज // 19 // 1 यथा अंकोंमें-१८४४६७४४०७३ 709551616 / / (227) वीस अंक गिनती वि, से सोल अंत / एक घटा वाकी रहे, सै पंद्र संत // 20 // इक वसु ची ची पट सपत, ची ची विंदी सात / तिय सत नभनी पंच पन,इक पटइक पन ख्यात / / 21 / / अव इनके पद वरनऊं, सो पद तीन प्रकार। प्रथम अरथ परमान विय, त्रितिय मध्य पद धार // 22 // जेते अच्छर जोरिक, कह परोजन नाम / धरम करी यों आदि दे, प्रथम अरथ पद धाम // 23 // सोरठा। .... .... नमः समयसाराय, आठ वरनत आदि दे। सो प्रमान पद गाय, भूपर परगट देखियै // 24 // दोहा। इक पट तिय ची आठ तिय, नभ सत वसु वसु आठ। ए अच्छर ग्यारै करै, कह्यौ मध्यपदपाठ // 25 // चौपई / सोलै सै चौतीस किरोर, लाख तिरासी ऊपर जोर / * सात सहस आठसै वखान, अहासी अच्छर पद मान // 26 // दोहा / वीस अंक इक पांचलौं, इक पद ग्यारै अंक।. - भाग दिए कितने भए, पद गन लेहु निसंक // 27 // एक एक दो आठ तिय, पंच आठ नभ सुन्न / : पंच सकल पद बंदना, कीजै लीजै पुन्न // 28 // .. ...1 यथा-१८४४६७४४०७३.७०९५५१ 615 / ' ... Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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