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________________ निहिं कोय। (224) मुनि बोले सब जगत टटोय, तुम सम उपगारी नगि भोग कीचते सर्व निकार, धरे मोखमैं धनि तू यार। मधुर कठिन दो बात बनाय, करे धरम उपदेस सुनार सो पीतम कहिये सिरदार, इस भी पर भी सुखदातार, दोदा। नरम कहै करडी कहै, करै पाप उपदेस / सो बैरी तातें बढ़े, दोनौं जनम कलेस // 34 // देव सुखी थानक गयौ, सब मुनि करि तप घोर। करम काटि सिवपुर गए, बंदत हो कर जोर // 35 // सगर-विरागछतीसिका, हेत भवानीदास / कीनी द्यानतरायनें, पढ़ौ सबन सुखरास // 36 // इति वैरागछत्तीसी। (225) वाणी-संख्या / दोहा। बंदी नानी बरन जुग, वरग किये पट जास / अच्छर एक घटाइक, अंग उपंग प्रकास // 1 // 'नेमिचंद' मुनिराजपद, चंदों मन वच काय / जस प्रसाद गिनती कहं, जनवचन-समुदाय // 2 // .. चौपई। अच्छर दोय गनतके काज, राखे भाखे स्रीजिनराज / तिनको वरग फलै विसतार, एक वरगसौं एक निहार // 3 // तातें लीजै अच्छर दोय, वरग छहाँ इस विध अवलोय / पहला वरग चार परवान, दजा सोलै घरग बखान // 4 // तीजा दोसै छप्पन अंक, भाखौ चौथा वरग निसंक। पेंसठ सहस पांचसै धार, छत्तिस अच्छर अधिक निहार // 5 // चार सतक उनतीस किरोर, लाख पचास एक कम जोर / सतसठि सहस दुसै छानवै, पंच वरग गिनती यह ठवै // 6 // दोहा। इक लख चौरासी सहस, चौसै सतसठि जान / इनको कोडाकोडि करि, आगें सुनौ बखान // 7 // लाख चवालिस जानिये, सात सहस से तीन / सत्तर एते कोर हैं, और कहूं परवीन // 8 // लाख कहे पच्चानवै, सहस एक पंचास / छै सै सोलै गनतका, छठा वरग परकास // 9 // 1 अंकोंमें यथा-१८४४६७,४४०७३७०,९५५१६१६। ध, वि. 15 Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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