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________________ (223) दोहा। असवार॥११॥ बात कहन भूपरि गमन, करन खड़ग खगधार। कथनी कथ करनी करें, ते विरले संसार // 23 // चौपाई। (222) भूप कह मेरे यह काम, भोगी भोग सरव सुखधाम / गए विलखकै सरव कुमार, फिरि आए सब है असवार। हमकौं काम कही कुछ सार, हम तब ही करि हैं आज जब हम छत्रीकुल जगमाहिं, आप कमाई लछिमी खातिर खंड छहौं मैं साधे सबै, मुझे साधना कुछ नहीं अवै। कमर कहैं अब होहि दयाल, हमें काम करि करौ खुस्याल भूप कहैं कैलास पहार, तहां बहत्तरि जिनगृह सार। आगें काल होयगा दुष्ट, तिनकी रच्छा कीजै पुष्ट // 14 दंड लेइ ता खाई करौ, गंगा लाइ तासमैं भरौ। सुनत वचन सव चले कुमार,खाई करि जल भरि सुखधार१५ इस औसर सुर कै फनधार, कियौ मूरछा सरव कुमार। सुनी खबर मंत्रिनने सही, नृप सुत मोह जान नहिं कही है। तव सुर भयौ वृद्ध द्विजराय, मृतक पुत्र इक कंठ लगाय धर्मभूप तू दीनदयाल, मेरौ पुत्र हन्यौ है काल // 17 // तेरे राज दुखी नहिं कोय, मम सुख होय करौ तुम सोय। भूप कहै सुनि हो द्विजराय, जमसौं काहूकी न वसाय॥१८॥ सिद्ध बिना सबहीकौं खाय, काल गालमैं है षटकाय। जो तू जीता चाहै तेह, पुत्र मोह तजि दिच्छा लेह // 19 // बांभन कहै सांच जो बात, तो सुनियै विनती विख्यात / भूप कहै धोका नहिं कोय, दिच्छा बिन जमनास न होय 20 मेरा सुत इक मारा सार, मारे तेरे साठि हजार / जो तुम लखौ अथिर जग धाम,दिच्छा क्यों न धरौ नर स्वाम मेरा बैरी तनक कृतांत, तेरा बैरी बड़ा न भ्रांत / तुम क्यों नहिं जीतौ जमराय,अमर होहु सब दुख मिटिजाय सुन पूरछा नृपकौं भई, सीतल-दरव-जोग मिटि गई। भावै भावन चार, भौ-तन-भोग अथिर संसार 24 ___ दोहा। भूप कहै संसार सब, कदली वृच्छ समान। केले माहिं कपूर ज्यौं, त्यौं यामैं निरवान // 25 // दुर्लभ नर भव पायकैं, जो मैं साधौं मोप। तो मेरौ जीवन सफल, मिटै सरव दुखदोप // 26 // पुत्र मोह फांसी पखौ, मैं न लख्यौ हित काज। अव सब फांसी कटि गई, दियौ भगीरथ राज // 27 // जहां धरम दिढ़ जिन तहां, पहुंचे वहु नृप संग। दिच्छा लीनी भावसौं, सुर हरख्यौ सरवंग // 28 // चौपाई। गयौ जहां थे साठि हजार, किये सचेतन सरव कुमार / पिता बारतासबसौं कही, मैं तुम कुलकौ प्रोहित सही // 29 // ____सोरठा। मनास न होय. जो तुम लखोबारा सार, मारे तेरे धन्य हमारे तात, राज काज तजि बन बसे / हम हूं जाय विख्यात, पिता किया सोई करें // 30 // चौपाई। सब कुमरन तब दिच्छा लई, देव प्रगट है वानी चई। हम कीनौ अपराध अपार, छमा करौतुम सब मुनि सार 31 Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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