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________________ (220) व छानवै पद अभिरामं / लाख अनादं // 10 // व पद बुध प्रकास है। कविहीनं // 11 // बिस कोड़ी सुख स्वादं 12 पूरव अपनीय जुग नाम, लाख छान पद तीजा पूरव बीरजवादं, पद है सत्तर लाख अना चौथा पूरव अस्त-नास है, साठ लाख पद बुध पर पंचम पूरव ग्यान प्रवीन, एक कोड़ि पद एक विहीन छहा पूरव सत्य वखान, एक कोड़ि पटपद परवाने सातम पूरव आतमवाद,पद छब्बिस कोड़ी सुख स्व आठम पूरव करम सु भाखं, एक कोड़ि पद अस्सी नौमा पूरव प्रत्याख्यानं, पद चौरासी लाख वखान। दसमा पूरव विद्या जानं, पद इक कोडि लाख टा ग्यारम पूर्व कल्यान बखानं, पद छब्बिस कोडी परधान द्वादस पूरव प्राणावाद, पद किरोर तेरह अविखादं तेरम पूरव क्रियाविसालं, नौ किरोर पद बहुगुनमाला चौदम पूरव विंद त्रिलोकं, साड़े वार कोड़ि पद धोक। साडे पच्चानवै किरोरं, पंच अधिक पूरव पद जोरं // 16 // इकसौ बारै कोड़ि वखाने, लाख तिरासी ऊपर जाने / ठावन सहस पंच अधिकान, द्वादस अंगसरव पद माने॥१७ क्यावन कोडि आठ ही लाख, सहस चौरासी छै सै भाखं। साढडकीस सिलोक वताए, एक एक पदके ए गाए // 18 // ए पच्चीसौं सदा विथारें, स्वपर दया दोनौं उर धारें। भौ सागरमैं जीव निहारे,धरम वचन गुन धार निकाएँ॥१९॥ (221) वैरागछत्तीसी। दोहा / अजितनाथ पद बंदिक, कहूं सगर अधिकार / साठि सहस सुत आप नृप, सरव चरम तन धार // 2 // चौपाई। नगर अजुध्याकी चक्रेस, सुर नर खग बस दिपै दिनेस / भूप गयौ वंदन जिनराय, परभौ मित्र मिल्यी सुर आय // 2 // हम तुम हुते विदेह मझार, तुम थे मो भगनी-भरतार / तुमरै दोय पुत्र थे धीर, एक पुत्र खायौ जमवीर // 3 // दूजे सुतकौं देकरि राज, हम तुम तप लीनौ हित काज / उपजे सोलै स्वर्ग मझार, तहां किया था तुमौं करार // 4 // पहले जा सो दिच्छा लेय, इहां रहै सो सिच्छा देय / सुतवियोग दिच्छा परनए, तातें साठि सहस सुत ठए // 5 // भोगेभोग तृपति न लगार, दिच्छा गहौ न लावौ वार / समझ बूझ नृप लह्यौ लुभाइ, पुत्रमोह छोड्यौ नहिंजाइ॥६॥ सुर जानी इसकै संसार, फिरि आयौ मुनिको व्रत धार / जोवनवंत काम उनहार, रविससितै दुति अधिक अपार 7 चारन रिद्धि महा तपवान, नृप वंद्यौ चैत्याले आन / पूछे भूप तज्यौ क्यों गेह, व्यौरा सरव कहौधरि नेह // 8 // घर वंदीखाना सुत पास, नारी सकल दुःखकी रास / राजा सुनिकै रह्यो लुभाइ, मोह उदैवस कछु न वसाइ॥९॥ इक दिन सरव कुमारन आइ, कह्यौ भूपसौं वचन सुनाइ। तुमें काम करना है जोय, हमको आग्या दीजैसोय // 10 // ____दोहा। केवलग्यानि समान पद, सुतकेवलि जग माहिं / उपाध्याय द्यानत नमौं, बढ़े ग्यान भ्रम नाहिं // 20 // इति जुगलआरती। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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