________________ (218) जुगलआरती। दोहा। (219) पंचाचार छतीस गुन, सात रिद्धि चहुं ग्यान / गनधर पद बंदों सदा, आचारज सुखदान / चौपई। एक परम परतीति विख्याता, दो दिच्छा सिच्छाके की तीन काल सामायिक धारी, चारों वेद कथन अधिकारी पंच भेद स्वाध्याय बतावें, पट आवस्यक सब समद्यान सातौं प्रकृति हनी दुखदानी, आठौं अंग अमल सरधान नौ बिध प्रायचित्त सिखलावे, दस विध परिगह त्याग करा ग्यारै विथा जोग जिन माने,वारै अंग कथन सव जाने तेरै राग प्रकृति सब नासे, चौदै जीवसमास प्रकासैं। पंट्टै मोह प्रकृति सब नासी, सोलै ध्यान-रीति परकासी // 5 // सत्रै प्रकृति लखै उदवेली, ठारै खै उपसम विधि झेली। परनै जिन उनईस बखानें, वरतमान बीसौं जिन मार्ने 6 इकइस गनत भेद सब सूझें, वाइस भाव दसम गुन बूझै। भवनत्रिक तेईस बताए, कामदेव चौवीस सुनाए // 7 // विकथा नाम पचीस वखार्ने, छब्बिस गुन दरवाँके जानें / दोहा / एक एक गुनमें कहे, हैं अनेक समुदाय / 'यानत' प्रभुकी बंदत, मोह धूरि झरि जाय // 11 // राजमल जैन बी.ए.बी.से सोरटा। ग्यारै अंग वखान, चौदै पूरय समझ सत्र। गुन पच्चीस प्रधान, उपाध्याय बंदों सदा // 1 // चौपाई। पहला आचारांग वखानं, पद अहारै सहस प्रमानं। . दूजा सूत्रकृतं अभिलाख, पद छत्तीस सहस गुरु भाखं 2 तीजा ठानाअंग सुजानं, सहस वियालिस पद सरधानं / चौथा समवायांग निहारं, चौसठिसहस लाख इक धारं // 2 // पंचम व्याख्याप्रगपति दरसं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं / छहा ग्यातृकथाविस्तारं, पांच लाख छप्पन हज्जारं // 4 // सातम उपासकाध्ययनंगं, सत्तरि सहस ग्यार लख भंगं ।अष्टम अंतकृतं दस ईसं, ठाई सहस लाख तेईसं // 5 // नवम अनुत्तर दस सु विसालं,लाख बानवै सहस चवालं / दसम प्रसनव्याकरन विचारं, लाख त्रानवै सोल हजारं 6 ग्यारम विपाकसूत्र सुभाखं, एक कोरि चौरासी लाखं। चार किरोर पंदरै लाख, दो हजार पद गुरु सब भाख 7 बारम दिष्टवाद अवधार, तामैं पंच बड़े अधिकारं। . प्रकरनसूत्र प्रथम अनुयोगं, पूरव अरु चूलिका नियोगं // 8 // चारौं पद छप्पन हज्जारं, तेरै कोड़ी लाख अठारं / पूरव प्रथम नाम उतपातं, ताके एक कोड़ि पद ख्यातं // 9 // रतनत्रै उनतीस प्रकारं, तीसौं चौबीसी निरधारं / करम भेद इकतीस सिखाये, खेत विदेह बतीस सुहाये // 9 // तेतिस देव इंद्रके थानं, चातीसौं अतिसै परिमानं / पैंतिस धनुष कुंथ तन बंदै, छत्तिस गुन पूरन अभिनंदै॥१०॥ Scanned with CamScanner