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________________ काज' // 33 // गार (216) नर भी पायो धरमकों, किया अधर्म बनाय। "विटते (1) कारन आनक, पूंजी चले गमाय' . चलौ भविक तहां जाइये, जहां वसत जिनराज। दुःखनिवारन सुखकरन, 'एक पंथ दो काज'॥ कर भाजन कूआ निकट, गुन बिन लहै न नीर / सो गुन क्यों नहिं धारियै, जो बुधि होय सरीर तन बल धन बल कपट बल, टाल बांह-बल जोगी अजस पापते ना डरै, पंच कहावै सोय // 35 // पंच परम पद नित जपै, पंचेंद्री सुख टारि। पंचनके पीछे चले, पंच वही सिरदार // 36 // एक कनक अरु कामिनी, ए दोनों दिढ़ वंध। . त्यागें निह. मोख है, और बात सब धंध // 37 // मान मुधा रस दूरि करि, दान छुधा रस देय। ध्यान छुधारस ठानिक, ग्यान सुधारस पेय // 38 समरथ हैं ते मीत नहिं, मीत न समरथ कोय। दोनों बातें कठिन हैं, औषधि मीठी होय // 39 // समरथ प्रीतम प्रभु बडे, तिन सेवौ मन लाय। इह पर भौ इन सम नहीं, मनवांछित सुखदाय // 40 // कहूं सफल आदर विना, कहुं आदर फल नाहिं। दोनौं लहिये धर्मतें, वृच्छ सफल अरु छाहिं // 41 // क्रोध समान न सत्रु है, छमा समान न मित्र / निंदा सम न गिलान है, प्रभुकी सम न पवित्र // 4 // (217) सोरटा। कहुं बिन ग्यान विराग, कहं ग्यान वैराग बिन / दोनों विना अभाग, ग्यान विराग सहित मुधी॥४३॥ चौपाई। देव धरम गुरु आगम मानि, चार अमोलक रतन समान / तजि मन क्रोध लोभ छल मान,भजि जिन साहिब मेरु समान दोहा। पाप पुन्य दोनों बसें, दरव माहिं भ्रम नाहिं / 'द्यानत' कीने पाप हैं, पुन्य अमानत माहिं // 45 // बड़े वृच्छकौं सेइयै, पूरन फल अरु छाहिं / जो कदाचि फल दे नहीं, छाहिं बहुत तप नाहिं // 46 // ताड़ ताप छेदन कसन, कनक-परीच्छा चार / देव धरम गुरु ग्रंथसौं, सम्यक परखी सार // 47 // दाना दुसमन हू भला, जो पीतम सनवंध / बड़े भाग्य” पाइयै, 'सोना और सुगंध' // 48 // धन जोरैतें ऊंच नहि, ऊंच दानतें होत / सागर नीचें ही रहै, ऊपर मेघ उदोत // 49 // यह सिच्छा पंचासिका, कीनी 'द्यानतराय'। पढ़ें सुनें जे मन धरै, सब जनकौं सुखदाय // 50 // इति शिक्षापंचासिका।. . .... Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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