________________ 261 __ परिशिष्टम्-१ गाथा-१०-२० अह भूरिमयविरोहा, पमाणया नो महानिसीहस्स / लोइयसत्थाणं पि व, तहाहि तम्मी अणुचियाइं // 20/10 // सत्तमनरयगमाईणि इत्थियाणं पि वन्नियाई ति / तं न लिहणाइदोसा, संति विरोहा सुए वि जओ // 20/11 // आभिणिबोहियनाणे, अट्ठावीसं हवंति पयडीओ। आवस्सयम्मि वुत्तं, इममन्नह कप्पभासम्मि // 20/12 // नाणमवाय-धीईओ, दंसणमिटुं च उग्गहेहाओ / एवं कह न विरोहो, विवरीयत्तेण भणणाओ // 20/13 // किंच गइ-इंदियाइसु, दारेसु न सम्म-सासणं इटुं / / इगिंदीणं विगलाण, मइसुए तं चऽणुन्नायं // 20/14 // सयगे पुण विगलाणं, एगिंदीणं च सासणं इष्टुं / न पुणो मइसुयनाणे, तहेव आवस्सए वुत्तं // 20/15 // सीहो तिविट्ठजीवो, जाओ सत्तममहीउ उव्वट्टो / जीवाभिगममएणं, मीणत्तं चेव सो लहइ // 20/16 // नायासुं पुव्वण्हे, दिक्खा नाणं च भणियमवरण्हे / आवस्सयम्मि नाणं, बीयम्मि दिणम्मि मल्लिस्स // 20/17 // छउमत्थे परिआओ, सद्धछम्मास-बारससमाओ / मग्गसिरकिण्हदसमी, दिक्खाए वीरनाहस्स // 20/18 // वइसाइसुद्धदसमी, केवललाभम्मि संभविज्ज कहं / इय सत्थेसुं बहवो, दीसंति परोप्परविरोहा // 20/19 // तस्संभवे वि आवस्सयाइ सत्थाई जह पमाणं / तह किं महानिसीहं, घिप्पइ न पमाणबुद्धीए // 20/20 //