________________ 262 गाथा-२१-३१ परिशिष्टम्-१ अह पंचनमोक्काराइयाणमुवहाणमणुचियं भिन्नं / आवस्सयस्स अंतो, पाढाहि तहाहि सामइयं // 20/21 // नवकारपुव्वयं चिय, कीरइ जं ता तयंगमेसो त्ति / अन्नं च इत्थ अत्थे, पयडं चिय कित्तियं एयं // 20/22 // नंदिमणुओगदारं, विहिवहुवग्घाइयं च नाऊण / काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स // 20/23 // इय सामाइयनिजत्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव / पडिकमणे य पविट्ठो, इरियावहियाए पाढो वि // 20/24 // अरहंतचेइयाण य, वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा / काउस्सग्गज्झयणे, पंचमए अणुपविट्ठो त्ति // 20/25 // बीयज्झयणसरूवे, चउवीसत्थओ वि जं विणिद्दिठो / आवस्सयाउ न पिहो, जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं // 20/26 // आवस्सयउवहाणे, ताण उवहाणं कयं समवसेयं / कयउवहाणे य पिहो, तक्करणे होइ अणवत्था // 20/27 // भन्नइ उत्तरमिहइं, नवकारो आइमंगलत्तेण / वुच्चइ जया तय च्चिय, सामाइएऽणुप्पवेसो से // 20/28 // जइया य सयण-भोयण, निज्जरहेउं पढिज्जए एसो / तइया सतत एव हि, गिज्झइ अन्नो सुयक्खंधो // 20/29 // इह-परलोयत्थीणं, सामाइयविरहिओ वि वावारो / दीसइ नवकारगओ, तदत्थसत्थाणि य बहूणि // 20/30 // नवकारपडल नवकारपंजिया सिद्धचक्कमाईणि / सामाइयंगभावो, इमस्स णेगंतिओ तम्हा // 20/31 //