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________________ गाथा 242 १८-भिक्षप्रतिमा-पञ्चाशकम् अह लाडयम्मि देसे अत्थि पुरं सुद्धजणवयसमिद्धं / नरवइ रयणसमुदं वडउदं जिणहरसमिद्धं // 5 // तत्थ य निवसइ सड्ढो, सम्मत्तदढो वियड्ढगुणजुत्तो। जीवाइपयत्थविऊ धणधण्णसमाउलो विमलचित्तो / / 6 / / णाऊण मच्चलोए अणिच्चयं जोव्वणं धणं धण्णं / अम्मच्चो कयकिच्चो, अम्मो णामेण वरसड्ढो / / 7 / / तस्सऽत्थि थिरसहावा, भावियभवभावणा विमलचित्ता संवेयपरा वि तहा अवितहवक्का वि विणयरया // 8 // जिणपूअकज्जनिरया निरया गुरुसाहुदाणकज्जेसु / धम्मेसु चेव निरया, तवसंजमउज्जया चेव // 9 // दाणमई रूयमई सहावकरुणापवन्नचित्ता वि / जिणवयणभावियमई होल्ला णामेण भज्ज त्ति / / 10 / / वीमंसीऊण तेणं, सह णियजायाइ सम्मभावेणं / कयणाणदाणराओ, जिणधम्मपवन्नओ पवरो / / 11 / / तत्तो सुअसद्धाए, निज्जरहेउ त्ति अ(म्मऽ)मच्चेण / सिरिधम्म एव उवज्झायकारणे कलिय कलिकालं // 12 // पंचासयाण वित्ति असुभनिवित्ति य भवविरहकित्ती / सूत्तसहिया वि(लिहिया) विमला वण्ण जसकित्ति व्व / / 13 / / जाव य मेरुस्स सिहा जाव य ससि-सूरमंडलपयारो / जाव य गह नक्खत्ता ताव य नंदउ इमं पोत्थं // 14 // सुकयत्थो होइ नरो सुयणाणपयाणओ असंदेहं / लहइ पसंसं लोए ण य आवइभायणं होइ // 15 // णाणेण होइ णाया, सव्वपयत्थाण मच्चलोयम्मि / णाणेण पूयणिज्जो सलाहणिज्जो वि लद्धजसो // 16 / / णाणं विवेयजणयं णाणं सिवसोक्खकारणं परमं / णाणं जिणवरभणियं, णरयगइनिवारणं एकं / / 17 / / णाणं दितो वि नरो, ण पावए अयसपंकयं कहवि / लंघेई भवपवंचं सुणाणदाणेण अवियारं // 18 //
SR No.035335
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmratnavijay
PublisherManav Kalyan Sansthan
Publication Year2014
Total Pages355
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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