________________ श्री पञ्चाशक प्रकरण - 2 गुजराती भावानुवाद 033 छाया :- प्रकृत्या श्रुत्वा वा दृष्ट्वा वा कांश्चित् दीक्षितान् जीवान् / मार्गं समाचरतः धार्मिकजनबहुमतान् नित्यम् // 5 // एईए चेव सद्धा जायइ पावेज्ज कहमहं एयं / भवजलहिमहानावं निरवेक्खा साणुबंधा य // 56 // 2/6 छाया :- एतस्यामेव श्रद्धा जायते प्राप्नुयां कथमहमेतत् / भवजलधिमहानावं निरपेक्षा सानुबन्धा च // 6 // विग्घाणं चाभावो,भावे विय चित्तथेज्जमच्चत्थं / एयं दिक्खारागो, निद्दिष्टुं समयकेऊहिं // 57 // 2/7 छाया :- विघ्नानां चाभावो भावेऽपि च चित्तस्थैर्यमत्यर्थम् / एतद् दीक्षारागो निर्दिष्टः समयकेतुभिः // 7 // ગાથાર્થ :- પ્રકૃતિથી, સાંભળીને તથા માર્ગને આચરતા હોય અને ધાર્મિકલોકને સંમત હોય એવા કોઈક દીક્ષિત જીવોને જોઇને ભવરૂપસમુદ્રને તરવા માટે વહાણ સમાન આ દીક્ષાને હું કેવી રીતે પામું? अभीक्षामi x निरपेक्ष भने सानु थि थाय छे. // 55-56 // દીક્ષાના સ્વીકારમાં વિનોનો અભાવ, તથા વિઘ્નો આવવા છતાં દીક્ષામાં ચિત્તની અતિશય સ્થિરતાमाने सिद्धांतना शातामोहीक्षा हो छ. // 57 // अर्थ :- ‘पयईए'= स्वभावथी 'सोऊण व= दीक्षान। गुोने सभणीने 'मग्गं'= भनि 'समायरन्ते'= आयरत होय 'धम्मियजण'= धन मायरे छ त धार्मि. वाय. सेवा पार्मि भासोने 'बहुमए'= सम्भत होय सेवा केइ दिक्खिए जीवे'= क्षित वोने 'दठ्ठण व'= ने 'निच्चं'= डंभेश। // 55 // 2/5 ___ 'एयं'= माहाक्षाने, 'कहमहं'= ढुंवारीत ? 'पावेज्ज'= प्रात 4 'एईए चेव'= मेवी मा हीक्षामा 'सद्धा'= २थि 'जायइ'= थाय छे. हीक्षा 'भवजलहिनावं'= संसारसमुद्रमांथी (तरणाव्यभिचारिणीम्=) अवश्य ता२ना२ महान वह समान छे वजी मा श्रद्धा 'निरवेक्खा'= ओछ। सांसारिणनी अपेक्षा गरनी 'साणुबंधा य= अनुबंध सहित अर्थात् भविष्यमांनी 5252 // या 24, विछे न पामे मेवी होय छे. // 56 // 2/6 'च'= अने 'विग्घाण'= उपद्रवोनो अभावो'= पुन्यन। यथा अभाव भने (श्रद्धान। शुभभावथी 5 विघ्नो सोप भी होय तो नष्ट थ य छे.) हाय 'भावे वि य'= ( निपठभी पापना उध्यथा विघ्नो सावतो 59 'अच्चत्थं'= अत्यंत 'चित्तथेज्ज'= थितनी दृढता 'एयं'= मा पूर्व डेसो 'समयकेऊहिं'= शास्त्रशो 43 'दिक्खारागो'= दीक्षारा 'निद्दिट्ठ'= वायो छ. // 57 // 2/7 ત્રણ ગાથા વડે લોકવિરુદ્ધનું વર્ણન કરે છે : सव्वस्स चेव निंदा, विसेसओ तह य गुणसमिद्धाणं / उजुधम्मकरणहसणं, रीढा जणपूयणिज्जाणं // 58 // 2/8 छाया :- सर्वस्य चैव निन्दा विशेषतः तथा च गुणसमृद्धानाम् / ऋजुधर्मकरणहसनं रीढा जनपूजनीयानाम् // 8 //