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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 प्रवेश : हाँ, क्योंकि दोनों ही पर्याय अपने-अपने निश्चित समय पर नष्ट और उत्पन्न होती हैं। न तो कोई उन्हें आगे-पीछे कर सकता है और न ही उत्पन्न होने से रोक सकता है। समकित : बिल्कुल ! इस बात को हम कथानुयोग के माध्यम से भी समझ सकते हैं। भगवान के ज्ञान में जीवों के भूत और वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के निश्चित भव (पर्याय) भी जानने में आ जाते हैं। प्रवेश : हाँ, यदि द्रव्यों की पर्याय निश्चित न होती तो भगवान जीवों (द्रव्यों) के निश्चित भवों (पर्यायों) को जैसे हैं वैसा कैसे जान पाते? समकित : हाँ, बिल्कुल ! प्रवेश : भाईश्री ! यह बात कथानुयोग आदि के माध्यम से समझ में तो आ जाती है, लेकिन यदि ऐसा है तो फिर मोक्ष का पुरुषार्थ करने की भी क्या जरुरत है क्योंकि मोक्ष की पर्याय भी अपने निश्चित समय पर हो ही जायेगी। उसे भी तो हम आगे-पीछे नहीं कर सकते? समकित : अरे भाई ! यह बात तो भगवान की वाणी में आयी है और भगवान तो स्वयं ही प्रचंड (तीव्र') पुरुषार्थी थे तो उन भगवान की वाणी में पुरुषार्थ का लोप कैसे होगा? प्रवेश : फिर? समकित : भाई ! इस बात को स्वीकार करना ही अपने-आप में महान पुरुषार्थ है और फिर पुरुषार्थ के बिना तो कोई भी पर्याय (काम) उत्पन्न होती ही नहीं क्योंकि हर पर्याय की उत्पति में निश्चित पाँच सम्वाय कारण" लागू होते हैं जो कि निम्न हैं: 1. स्वभाव (nature) 2. होनहार (destiny) 3. काललब्धि (time-quotient/ripeness) 1.medium 2.past 3.present 4.future 5.certain 6.efforts 7.intense 8.omission 9.effort 10.Certain 11.multitude-causes 12.apply
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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