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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 समकित : हाँ, बिल्कुल और वैसे भी यदि एक द्रव्य को अपना काम कराने के लिये दूसरे द्रव्य की जरुरत पड़े तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह द्रव्य स्वयं अपना काम करने में सक्षम नहीं है और जो स्वयं ही अपना काम करने में सक्षम नहीं है तो दूसरा उसका काम किस तरह कर सकेगा? प्रवेश : हाँ, सही है। समकित : हाँ और यदि वह स्वयं अपना काम करने में सक्षम है तो दूसरे को उसका काम करने की जरुरत ही क्या है और यदि एक द्रव्य का काम दूसरा द्रव्य करे, तो दूसरे द्रव्य का काम तीसरे द्रव्य को और तीसरे द्रव्य का काम चौथे द्रव्य को करना पड़ जायेगा। इस तरह तो विश्व में अनंत पराधीनता हो जायेगी। प्रवेश : हाँ, इससे अच्छा तो होगा कि सब अपना-अपना काम करे। इससे पराधीनता भी नहीं होगी और व्यवस्था भी बनी रहेगी। समकित : हाँ, बिल्कुल। यही बात तो वस्तुत्व गुण कह रहा है कि सभी द्रव्य अपना-अपना प्रयोजनभूत काम करने में सक्षम है, उसे दूसरे से अपना काम करवाने की जरुरत नहीं है इसी कारण विश्व में अनंत वस्तु-स्वातंत्र्य और व्यवस्था कायम है। प्रवेश : सही है। हम सभी भी तो अपने-अपने जीवन में स्वतंत्रता और व्यवस्था चाहते हैं। समकित : हाँ, यदि हम भगवान की वाणी में आयी हुई इस स्वतंत्र वस्तु व्यवस्था को स्वीकार करें तो हमारे जीवन का सारा रोना-गाना मिट जायेगा। प्रवेश : भाईश्री ! वो कैसे? 1.meaning 2.capable 3.infinite 4.dependency 5.proper-order 6.mutual-independence 7.accept
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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