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________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 आय कर्म- जब जीव अपने भावों के अनुसार मनुष्य, देव, तिर्यंच या नरक आयु पाता है तब जिस द्रव्य कर्म का उदय मौजूद (निमित्त) रहता है उसे आयु कर्म कहते हैं। नाम कर्म- जब जीव अपने भावों के अनुसार अच्छे या बुरे शरीर, रूप, रंग आदि पता है तब जिस कर्म का उदय मौजूद (निमित्त) रहता है उसे नाम कर्म कहते हैं। गोत्र कर्म- जब जीव अपने भावों के अनुसार ऊँचे या नीचे आचरण करने वाले कुल' में जन्म लेता है तब जिस कर्म का उदय मौजूद (निमित्त) रहता है उसे गोत्र कर्म कहते हैं। प्रवेश : अच्छा अब समझ में आया। इसीलिये कहते हैं कि घातिया कर्मों का नाश होने से अरिहंत भगवान को अनंत-ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य प्रगट हो जाते हैं। असल में तो उन्होंने द्रव्य-कर्मों का नहीं बल्कि अपने मोह, राग-द्वेष आदि भाव-कर्मों का नाश किया है। समकित : हाँ, बिलकुल सही। इन्हीं अरिहंत भगवान के शरीर आदि संयोगों के छूट जाने पर कहा जाता है कि अरिहंत भगवान बाकी चार अघातिया-कर्मों का भी नाश करके सिद्ध दशा यानि कि मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। और तुम्हें पता है कि कल मोक्ष सप्तमी है। कल के ही दिन लगभग 2800 साल पहले पार्श्वनाथ भगवान ने सिद्ध दशा यानि कि मोक्ष की प्राप्ति की थी। प्रवेश : अरे वाह ! भाईश्री पार्श्वनाथ भगवान के बारे में बताईये न? समकित : आज नहीं, आज बहुत देर हो गयी है। कल सुबह हमको जल्दी उठकर पार्श्वनाथ भगवान का प्रक्षाल व पूजन करने जाना है। जिस क्षण विकारी भाव किया उसी क्षण जीव उसका भोक्ता है, कर्म फिर उदय में आयेगा और फिर भोगा जायेगा ऐसा कहना वह व्यवहार है। -गुरुदेवश्री के वचनामृत 1.family 2.remaining
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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