________________ मिथ्यात्व और कषाय समकित : कल हमने देखा कि जीव एक गति से दूसरी गति में भटक-भटक कर अनेक दुःख भोग रहा है।आज हम इस भटकन के कारण को समझेंगे। क्या तुम बता सकते हो कि वे कारण कौन से हैं ? प्रवेश : भाईश्री ! कल आपने कहा था कि चारों गतियों में जीव अपने मिथ्यात्व और कषाय के कारण ही दुःखी हो रहा है, तो चारों गतियों में भटकने का कारण भी शायद मिथ्यात्व और कषाय ही होंगे? समकित : शायद नहीं, 100 प्रतिशत' यही कारण है। मिथ्यात्व और कषाय ही चारों गतियों में भटकने के कारण हैं और यह ही चारों गतियों में रहकर दुःखी होते रहने के भी कारण हैं और इसी का नाम संसार है। प्रवेश : यह मिथ्यात्व और कषाय क्या बला है ? समकित : यह बला नहीं, हमारी ही गल्तियाँ हैं। प्रवेश : कृपया एक-एक करके समझाईए। समकित : हाँ, ठीक है ! मिथ्यात्व- स्वयं को यानि कि आत्मा को नहीं पहिचानना ही मिथ्यात्वं है और जो आत्मा को नहीं पहिचानने देते बल्कि हमें संसार में ही फसा कर रखते हैं, ऐसे कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु में श्रद्धा रखना भी मिथ्यात्व कहलाता है। प्रवेश : ये कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु क्या होते हैं ? समकित : जो वीतराग, सर्वज्ञ व हित-उपदेशी नहीं हैं ऐसे देवी-देवता कुदेव हैं। मोही (मिथ्यात्वी) व रागी-द्वेषी (कषायी) एवं कषाय को धर्म बताने वाले साधु कुगुरु हैं और उनके द्वारा लिखे गये कषाय को धर्म बताने वाले कल्पित शास्त्र कुशास्त्र हैं। इनका साथ करने से हम भी 1.percent 2.false belief 3.faith 4.imaginary