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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 समकित : नरक में ही नहीं, चारों ही गतियों में जीव अपने मिथ्यात्व' व कषायों के कारण ही दुःखी है। प्रवेश : तो क्या स्वर्ग के देव भी दुःखी हैं ? समकित : हाँ बिलकुल ! यह बात और है कि देवों की कषाय दूसरों के मुकाबले थोड़ी मंद होती है। इसलिए देवता दूसरों के मुकाबले थोड़े कम दुःखी हैं पर हैं तो दुःखी ही। क्योंकि जब तक मिथ्यात्व व कषाय पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाती तब तक पूरी तरह से दुःख दूर नहीं हो सकता, सच्चा सुख नहीं मिल सकता। प्रवेश : मतलब चारों ही गतियों में दुःख ही दुःख है। इनमें रहकर सच्चा सुख नहीं मिल सकता? समकित : हाँ, मिथ्यात्व व कषायों के कारण चारों गतियों में भटकने का नाम ही संसार है और संसार में सुख नहीं हो सकता। क्योंकि यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकर, संसार यानि कि चारों गतियों का त्याग कर के पंचम गति में क्यों जाते? प्रवेश : यह पंचम गति क्या है ? आपने तो कहा था कि गतियाँ चार होती हैं? समकित : तुमने ध्यान से नहीं सुना। मैंने कहा था संसार में चार गतियाँ हैं। पंचम गति तो संसार से पार है, यानि कि मोक्ष ही पंचम गति है। प्रवेश : जीव चारों गतियों मे क्यों भटकता है ? समकित : इसका उत्तर हम अगली कक्षा में देखेंगे। अनुकूलता में नहीं समझता तो भाई ! अब प्रतिकूलता में तो समझ ! किसी प्रकार समझ... समझ और वैराग्य लाकर आत्मा में जा। -बहिनश्री के वचनामृत 1.false belief 2.attachment-malice 3.low 4. fifth
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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