________________ (विद्वानों के अभिमत पं. श्री राजकुमार जी शास्त्री, शाश्वतधाम उदयपुर (राज.) लिखते हैं: प्रो. पुनीत जी जैन मंगलवर्धिनी द्वारा आधुनिक भाषा शैली में लिखित “समकित-प्रवेश" पुस्तक का विहंगावलोकन करने का अवसर प्राप्त हुआ। भाई पुनीत जी बहुत ही उत्साही, तत्व प्रेमी व तत्व प्रचार-प्रसार के लिए सन्नद्ध हैं। आपने आधुनिक परिवेश में बाल-किशोर-युवा वर्ग को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पाठों का संकलन किया है जिसमें चारों अनुयोगों के अत्यावश्यक विषयों को संजोया गया है। ऐसा नहीं है कि यह विषय अन्यत्र प्राप्त नहीं होते परंतु नये परिवेश के अनुसार उनका प्रस्तुतिकरण भी नये प्रकार से होना चाहिए इसलिए यह पुस्तक नये पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। यह पुस्तक जैन दर्शन के प्रारंभिक ज्ञान को कराने एवं समकित में प्रवेश कराने में सार्थक होगी इसी भावना के साथ लेखक को हार्दिक शुभकामनाएँ। डॉ. संजीव गोधा, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान, जयपुर लिखते हैं: प्रो. पुनीत मंगलवर्धिनी द्वारा युवा वय में तत्वप्रचार का महान कार्य संपादित किया जा रहा है। परमागम ऑनर्स कक्षाओं के माध्यम से पूरे भोपाल में व भोपाल के बाहर दिगंबर व श्वेतांबर संपूर्ण जैन समाज में उनका धर्म प्रभावना कार्य सराहनीय है और आगामी पीढ़ी को धर्म मार्ग में दृण करने के लिये मील का पत्थर साबित होगा। आपके द्वारा एक बिल्कुल नयी पद्धति में जो “समकित-प्रवेश” पुस्तक की रचना हुई है उसे देखकर निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यह पुस्तक किसी भी व्यक्ति को जैन दर्शन की बारीकियों को समझने के लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी क्योंकि इसमें जैन दर्शन के समस्त मूलभूत सिद्धांतों व चारों अनुयोगों के महत्वपूर्ण विषयों को समाहित कर लिया गया है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि इसमें कठिन सैद्धांतिक शब्दों को फुटनोट के माध्यम से इंग्लिश में भी प्रस्तुत किया गया है अतः जो हमारा आज का इंग्लिश माध्यम से शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग है वह भी इस पुस्तक का पूरा-पूरा लाभ ले सकेगा। सरसरी नजर से अवलोकन करने पर यह पुस्तक मुझे बहुत ही व्यवस्थित व सटीक प्रतीत हुई है। यदि भूल से कोई भूल रह भी गयी होगी तो निश्चित ही उसको आगामी संस्करणो में परिमार्जित कर लिया जायेगा। संपूर्ण जैन समाज इस पुस्तक का लाभ लेवे इस भावना के साथ मैं भाई श्री पुनीत जी को यह पुस्तक समाज को समर्पित करने हेतु साधुवाद प्रेषित करता हूँ।