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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 283 ये दोनों ही नहीं उड़ सकेंगे। ध्यान रहे प्लेन की गरिमा उड़ने में है रन-वे पर दौड़ने में नहीं। उसे उड़ने के लिये मजबूरी में रन-वे पर दौड़ना पड़ता है। समझे ? प्रवेश : हाँ, उड़ना जरूरी है, दौड़ना मजबूरी है। समकित : बहुत खूब ! प्रवेश : भाईश्री ! कल हमारे यहाँ रामनवमी की छुट्टी है। हमने सुना है कि राम भगवान अपने यहाँ भी पूज्य हैं ? समकित : हाँ, पूज्य तो हैं लेकिन रागी नहीं, वीतरागी और सर्वज्ञ स्वरूप में। प्रवेश : मतलब? समकित : मतलब यह कि जैन धर्म में व्यक्ति की नहीं, वीतरागता-सर्वज्ञता आदि गुणों की पूजा होती है। जब व्यक्तियों में यह गुण प्रगट हो जाते हैं तभी वे पूज्य होते हैं, उससे पहले नहीं। प्रवेश : तो क्या राम भगवान ने यह गुण प्रगट कर लिये थे? समकित : हाँ, आत्मानुभवी, क्षायिक सम्यकदृष्टि तो वह पहले से ही थे फिर उन्होंने मुनिदशा धारण कर, क्षपक श्रेणी चड़कर, वीतरागता-सर्वज्ञता यानि कि अरिहंत दशा प्राप्त कर ली थी और फिर अंत में आयु पूरी कर सिद्ध हो गये थे। प्रवेश : अरे वाह ! कृपयां पूरी कहानी सुनाईये ? समकित : आज नहीं कल। एक नय का सर्वथा पक्ष ग्रहण करे तो वह मिथ्यात्व के साथ मिला हुआ राग है और प्रयोजन के वश एक नय को प्रधान करके उसका ग्रहण करे तो वह मिथ्यात्व से रहित मात्र अस्थिरता का राग है। __-गुरुदेवश्री के वचनामृत 1. individual 2.attributes 3.venerable 4. achieve 5.last 6. please
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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