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________________ 260 समकित-प्रवेश, भाग-8 चार प्रकार के सम्यकज्ञान, तीन प्रकार के मिथ्याज्ञान, तीन प्रकार के दर्शन, पाँच क्षायोपशमिक लब्धियाँ, क्षायोपशमिक सम्यकत्व, क्षायोपशमिक चारित्र, संयमासंयम (देश चारित्र) यह सब जीव की आंशिक शुद्ध पर्याय यानि कि क्षायोपशमिक भाव हैं। प्रवेश : अरे वाह ! यह तो बहुत सरल है। समकित : हाँ, ध्यान से सुनने पर सब सरल हो जाता है। दुनिया में जिस काम में हमें अपना फायदा' दिखता हो तो फिर वह कितना भी कठिन क्यों न हो हम उसे सीख ही लेते हैं। तो यह तत्वज्ञान तो हमें सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाला है। इसे तो कैसे भी करके सीख ही लेना चाहिये। 4. क्षायिक भावः जीव की स्थाई पूर्ण शुद्ध पर्यायों को क्षायिक भाव कहते हैं। जीव की इन स्थाई व पूर्ण शुद्ध पर्यायों का माप और कथन द्रव्य-कर्मों के क्षय के माध्यम से किया जाता है। इसलिये जीव की स्थाई पूर्ण शुद्ध पर्यायों को (निमित्त अपेक्षा) क्षायिक भाव कहते हैं। क्षायिक (अनंत) ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक सुख, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक अपभोग और क्षायिक वीर्य यह नौ क्षायिक लब्धियाँ जीव की स्थाई पूर्ण शुद्ध पर्याय यानि कि क्षायिक भाव हैं। प्रवेश : पारिणामिक भाव जीव की कौनसी पर्याय हैं ? समकित : अरे! पहले बताया था न कि शुरु के चार भाव पर्याय रूप हैं और आखिरी पाँचवां भाव गुण (स्वभाव) रूप है। प्रवेश : अरे हाँ ! समकित : 5. पारिणामिक भावः पारिणामिक भाव जीव के स्वभाव को कहते हैं। जीव का स्वभाव होने से वह हमेशा (त्रिकाल) शुद्ध, शाश्वत (ध्रुव), एक-रूप रहने वाला है। 1. benefit 2.tough 3. stable 4. abolishment
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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