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________________ 242 समकित-प्रवेश, भाग-8 दूसरे स्तर की लीनता कर अविरत् सम्यकदृष्टि से पाँचवा देश-विरति गुणस्थान प्रगट' कर लेते हैं। प्रवेश : इनको देश-विरति, देश (आंशिक) व्रत होने के कारण ही कहते हैं न? समकित : हाँ, क्योंकि सकल (संपूर्ण) व्रत मुनिराज को ही होते हैं। यही देश-विरति श्रावक जब अपनी आत्मनीलता को दूसरे स्तर से से बढ़ाकर तीसरे स्तर की करने का पुरुषार्थ करते हैं तो उनको महाव्रत आदि लेने का सहज शुभ-राग आता है और वह मुनि दीक्षा धारण कर लेते हैं व आत्मा में तीसरे स्तर की लीनता कर सातवें अप्रमत्त संयत गुणस्थान को प्रगट कर लेते हैं। प्रवेश : पाँचवे गुणस्थान से सीधा सातवाँ गुणस्थान ? फिर छठवाँ ? समकित : सुनो! 7. अप्रमत्त संयतः इस सातवें गुणस्थान में तो मुनिराज को आत्मा में तीसरी स्तर की लीनता है। यह गुणस्थान शुद्ध-भावों (शुद्धोपयोग) का है। यानि कि तीसरे स्तर तक की कषाय (राग) का तो अनुदय है, बाकी रह गई चौथे स्तर की कषाय(राग) भी बहुत ही मंद है यानि कि इस गुणस्थान में मुनिराज को जरा भी प्रमाद नहीं है। इसलिये इस गुणस्थान का नाम अप्रमत्त संयत है। सातवें गुणस्थान का समय अंतर्मुहूर्त है। अंतर्मुहूर्त पूरा होने पर यहाँ से गिरकर मुनिराज छठवें प्रमत्त-संयत गुणस्थान में आ जाते हैं। 6. प्रमत्त-संयतः जब सातवें गुणस्थान में मुनिराज का बाकी रहा कषाय (राग) जो कि बहुत ही मंद थी वह थोड़ी-तीव्र हो जाती है तब मुनिराज शुद्ध-भावों (शुद्ध-उपयोग) से शुभ-राग (शुभ-उपयोग) में, यानि कि अल्प प्रमाद वाले इस प्रमत्त-संयत नाम के छठवें गुणस्थान में आ जाते हैं और अपने व्यवहार महाव्रत, मूलगुण आदि को निर्दोष 1.achieve 2.partial 3.complete 4.automatic 5.achieve 6.un-rise 7.low 8.in-cautiousness 9.little-high 10.flawlessly
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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