________________ तीर्थकर ऋषभदेव समकित : आज हम भगवान ऋषभदेव की कहानी सुनेंगे। प्रवेश : हमने तो सुना है कि कोई जन्म से ही भगवान नहीं होता, भगवान तो पुरुषार्थ' से बना जाता है। समकित : बिल्कुल ठीक सुना है। इंसान ही स्वयं की साधना करके भगवान बन जाते हैं। प्रवेश : अच्छा इसीलिए हम रोज कक्षा खत्म होने के बाद पढ़ते हैं भक्त नहीं, भगवान बनेंगे। समकित : हाँ, आखिर जैन धर्म भक्त से भगवान बनाने वाला धर्म ही तो है। प्रवेश : भाईश्री ! अब तो इंतजार नहीं हो पा रहा। समकित : हाँ, हाँ सुनाता हूँ। राजकुमार ऋषभदेव का जन्म अयोध्या के क्षत्रिय राजा नाभिराय की रानी मरुदेवी के गर्भ से हुआ था। प्रवेश : वे क्षत्रिय थे ? यानि कि जैन नहीं थे ? समकित : यह तुमसे किसने कह दिया कि क्षत्रिय का मतलब अजैन होता है। क्षत्रिय का मतलब तो होता है-राज्य करने वाले। जो राज्य करता है चाहे वह जैन हो या अजैन, क्षत्रिय ही है। क्षत्रिय यह उनका वर्ण (पेशा) था और जैन उनका धर्म था। चौबीसों तीर्थंकरों का जन्म राज्य करने वाले क्षत्रिय जैन राजाओं के यहाँ ही हुआ है। प्रवेश : तो फिर बड़े होकर राजकुमार ऋषभदेव ने भी राज्य किया ? समकित : हाँ, उन्होंने राज्य भी किया और शादी भी। राजा ऋषभदेव की दो रानियाँ थी। पहली नंदा और दूसरी सुनंदा, रानी नंदा से उनको भरत आदि सौ पुत्र और ब्राह्मी नाम की पुत्री थी। 1.efforts 2.rule 3.profession