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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 205 प्रवेश : आपने कहा कि भाव बिना की क्रिया फल नहीं देती। तो भाव सहित की गयी पूजा का फल क्या है ? समकित : पूज्य यानि कि अरिहंत भगवान (जिनेन्द्र) जैसे गुणों की प्राप्ति ही भाव' सहित की गयी जिन-पूजा का फल है। प्रवेश : जिन-पूजा तो शुभ-भाव है। उससे कैसे जिनेन्द्र जैसे गुणों (वीतरागता) की प्राप्ति होती है ? समकित : जिनेन्द्र की पूजा करते समय हमें उनके जैसे गुणों की प्राप्ति करने की व उनके बताये हुए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है और सच्ची व्यवहार पूजा के साथ तो निश्चय पूजा (वीतरागता) भी होती ही है, क्योंकि निश्चय पूजा के बिना सच्ची व्यवहार पूजा हो ही नहीं सकती। प्रवेश : ये तो हुआ पूजा का पारमार्थिक फल। पर पूजा से कुछ लौकिक फल भी मिलता है या नहीं ? समकित : जिनेन्द्र भगवान के सच्चे भक्त को तो पूजा करते समय एक मोक्ष की ही इच्छा रहती है। लौकिक फल का तो उसको विचार तक नहीं आता। हाँ, यह बात जरूर है कि ऐसी निष्काम (निछिक) व सहज भक्ति करने वाले भक्त को कषाय की मंदता होने से सहज सातिशय पुण्य का बंध होता है जिसके फल में उसे लौकिक अनुकूलता और मोक्षमार्ग में साधक निमित्तों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। लेकिन जो पूजा करते समय लौकिक फल की बांछा रखते हैं उन्हें लोभ कषाय की तीव्रता होने से सातिशय पुण्य का बंध नहीं होता। प्रवेश : लेकिन लौकिक बाँछा (कामना) रखकर पूजा करने वालों को भी तो अनुकूलताएँ प्राप्त होती देखी जाती हैं ? समकित : वह उनके पूर्व में किये हुये पुण्य का फल होता है लेकिन वह उसको वाँछा (कामना) के साथ की हुई पूजा का फल मानकर अपने मिथ्यात्व को और अधिक पुष्ट कर लेते हैं। 1.conscience 2.path 3.spiritual 4.worldly 5.desireless 6.extra-ordinary 7.favored-halvings 8.favored
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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