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________________ 204 समकित-प्रवेश, भाग-7 तदाकार-स्थापना पूजाः अरिहंत भगवान के आकार' जैसी प्रतिमा (मूर्ति) में उनके गुणों की विधिपूर्वक स्थापना करके पूजा करना तदाकार स्थापना पूजा है। यानि कि प्रतिष्ठित प्रतिमा की पूजा करना तदाकार स्थापना पूजा है। इस पूजा में प्रतिष्ठित प्रतिमा सामने होने से पुष्पादि में अरिहंतादि का आह्वानन्, स्थापन्, सन्निधिकरण और विसर्जन करने की जरूरत नहीं रहती। अतदाकार-स्थापना पूजाः अरिहंत भगवान के आकार से रहित पूष्पादि में उनकी स्थापना करके पूजा करना अतदाकार स्थापना पूजा है। चूंकि इस पूजा में अरिहंतादि की प्रतिष्ठित प्रतिमा सामने नहीं होती इसलिये पुष्पादि में अरिहंतादि का आह्वानन, स्थापन्, सन्निधिकरण और पूजा के बाद उनका विसर्जन करना आवश्यक होता ध्यान रहे अतदाकार पूजा अरिहंत भगवान की प्रतिष्ठित प्रतिमा न होने पर ही की जा सकती है। वर्तमान हुण्डावसर्पिणी काल में अन्यमती भी अपने कुदवों की इसी प्रकार की अतदाकार स्थापना करके पूजा करते हैं। जिनेन्द्र देव और कुदेवों की स्थापना में अंतर बना रहे इसलिये हमें अतदाकार स्थापना पूजा से बचना चाहिये। प्रवेश : यह तो पता ही नहीं था। पूजा के और भी प्रकार हैं क्या ? समकित : हाँ, पूज्य के आधार पर भी पूजा का वर्गीकरण किया गया है जो कि निम्न हैः 1. सचित्त पूजाः साक्षात् समवसरण में विराजमान जीवंत (सचित्त) रिहत भगवान की पूजा करना सचित्त पूजा है। 2. अचित्त पूजाः अरिहंत भगवान की प्रतिमा की पूजा करना अचित्त पूजा है। 3. मिश्र पूजाः समवसरण में विराजमान जीवंत (सचित्त) अरिहंत भगवान व प्रतिमा (अचित्त) की एक साथ पूजा करना मिश्र पूजा है। 1.shape 2.false-believers
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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