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________________ 198 समकित-प्रवेश, भाग-7 प्रवेश : स्वाध्याय को परम् तप कहा गया है, ऐसा क्यों ? समकित : क्योंकि स्वाध्याय तप के माध्यम से ही सभी प्रकार के तपों का वास्तविक (असली) स्वरूप समझा जा सकता है। जब तक हम तप के असली स्वरूप को समझेंगे नहीं, तब तक सच्चे तप को करेंगे कैसे ? इसीलिये सच्चे तप को करने के लिये स्वाध्याय तप करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिये इसे ही परम् तप कहा गया है। 11. व्युत्सर्ग तप- शरीर आदि से उपयोग हटा कर आत्मा में लगाने का अभ्यास करना व्यवहार-व्युत्सर्ग तप है। शरीर आदि से उपयोग हटकर आत्मा में लग जाना यह निश्चय-व्युत्सर्ग है। व्युत्सर्ग को कायोत्सर्ग भी कहते हैं। ध्यान रहे अंगुली पर मंत्रादि गिनना कायोत्सर्ग में लगने वाला अंगुली-चालन नाम का दोष है। 12. ध्यान तप- चित्त को आत्मा में एकाग्र करने का अभ्यास व्यवहार-ध्यान तप है। आत्मा में एकाग्र हो जाना निश्चय-ध्यान है। पाँचवे गुणस्थानवर्ती श्रावक को इन बारह प्रकार के तपों को अपनी शक्ति अनुसार करने का शुभ-राग आये बिना नहीं रहता। प्रवेश : और दान? समकित : 6.दानः स्वयं को शुद्ध भावों का दान (आत्मलीनता) रूप निश्चय दान के साथ होने वाला चार प्रकार के बाह्य दान देने का शुभ राग व्यवहार दान कहलाता है। व्यवहार दान चार प्रकार के होते हैं जो कि निम्न हैं: 1. आहार दान 2. औषधि दान 3. अभय दान 4. ज्ञान दान 1. आहार दान- पहले बताये हुए तीन प्रकार के सत्पात्रों को विधिपूर्वक शुद्ध, प्रासुक और मर्यादित आहार (भोजन) देना आहार दान है। 1.essential 2.practice 3.fingers 4.fault 5.zconcentrate 6.capability 7.medicine
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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