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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 197 बाद के प्रयाश्चित आदि छः तपों का स्वरूप कुछ ऐसा है कि इनको करने वाला व्यक्ति बाहर से देखने वालों को तपस्वी नहीं लगता, इसलिये इन्हें अंतरंग' तप कहा गया है। यहाँ अंतरंग और बहिरंग दोनों ही तप शुभ-राग रूप होने से व्यवहार-तप हैं। प्रवेश : इनका स्वरूप समाझाईये न ? समकित : ठीक है! 1. अनशन तप- सभी प्रकार के आहार का त्याग अनशन तप है। 2. अवमौदर्य तप- भूख से कम आहार लेना अवमौदर्य (ऊनोदर) तप है। 3. वृत्ति परिसंख्यान तप- भोजन संबंधी वृत्तियों को अटपटे नियमों द्वारा सीमित कर लेना वृत्ति परिसंख्यान तप है। 4. रस परित्याग तप- एक, दो या सभी रसों का त्याग करके भोजन लेना रस-परित्याग तप है। 5. काय क्लेश तप- शरीर के प्रति निर्मोहता' की परीक्षा करने के लिये शरीर को तरह-तरह की प्रतिकूलताएँ देना काय-क्लेश तप है। 6. विविक्त शय्यासन तप- बाधा रहित, एकांत व प्रासुक स्थान में एक ही आसन में शरीर को विश्राम देना विविक्त-शय्यासन तप है। 7. प्रयाश्चित तप- प्रमाद" वश व्रतों में लगने वाले दोषों का परिमार्जन करना प्रयाश्चित तप है। 8. विनय तप- दर्शन, ज्ञान व चारित्र में अपने से ज्येष्ठ" व श्रेष्ठ गुणी जनों का आदर करना विनय तप है। 9. वैयावृत्य तप- बाल, वृद्ध व रोगी साधु व श्रावकों की सेवा-सुश्रुषा" या परिचर्या करना वैयावृत्य तप है। 10.स्वाध्याय तप- वीतरागी शास्त्रों का स्वाध्याय करना स्वाध्याय तप है। 1.internal 2.diet 3.instincts 4.regulations 5.limited 6.taste 7.detachment 8.rough-treatment 9.disturbance 10.posture 11.carelessness 12.senior 13.eminent 14.deserving 15.service 16.care-taking
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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