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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 189 3. अचौर्याणवतः किसी भी चीज को उसके मालिक' की आज्ञा बिना ले लेना या किसी को दे देना व्यवहार चोरी है। ऐसी चोरी का त्याग अचौर्याणवत है। प्रवेश : यह तो महाव्रत हो गया, क्योंकि पूरी तरह से चोरी का त्याग हो गया। समकित : नहीं, यह श्रावक पानी व मिट्टी को बिना पूछे ही ले लेता है इसलिए अणु (आंशिक/एकदेश) रूप से ही चोरी का त्यागी होने से, इसका यह व्रत अचौर्याणुव्रत कहलाता है। 4. ब्रह्मचर्याणवतः परस्त्री-सेवन का त्याग ब्रह्मचर्याणुव्रत है। यह श्रावक अभी स्व-स्त्री सेवन के त्याग में सक्षम नहीं है लेकिन परस्त्री सेवन का पूर्ण रूप से त्यागी है इसलिये इस व्रत को स्व-दार संतोष (स्व-पत्नी संतोष) व्रत भी कहते हैं। 5. परिग्रह परिमाण व्रतः चौबीस प्रकार के परिग्रह का आंशिक रूप से त्याग परिग्रह परिमाण व्रत है। यह श्रावक पूरी तरह से परिग्रह का त्याग नहीं कर सकता लेकिन परिग्रह को सीमित कर लेता है यानि कि आंशिक रूप से परिग्रह का त्यागी है। अंतरंग-परिग्रहों में इस श्रावक का मिथ्यात्व परिग्रह का तो पूरी तरह से त्याग है व क्रोध आदि कषाय रूप परिग्रह का भी भूमिका योग्य त्याग है एवं बहिरंग-परिग्रह जमीन-मकान, धन-धान्य, नौकर-नौकरानी, कपड़ा-वर्तन, यान-शयनासन आदि को भी सीमित कर लिया है। प्रवेश : गुणव्रत और शिक्षाव्रत ? समकित : वह बाद में। आज के लिये इतना ही काफी है। यथार्थ रुचि सहित शुभभाव वैराग्य एवं उपशम-रस से सरोबोर होते हैं, और यथार्थ रुचि बिना, वह के वही शुभ भाव रूखे एवं चंचलता युक्त होते हैं। -बहिनश्री के वचनामृत 1.owner 2.capable 3.possessions 4.limited 5.internal-possessions 6.external-possessions 7.wealth-eatables 8.vehicle&furniture
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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