________________ 188 समकित-प्रवेश, भाग-6 (स) आरंभी हिंसाः गृहस्थी-के-कार्यों में बहुत सावधानी वर्तने के बाद भी जो हिंसा हो जाती है वह आरंभी हिंसा है। विरोधी हिंसाः अपनी, अपने परिवार, धर्म, समाज व देश की रक्षा के लिये बिना इच्छा के मजबूरी में की गयी हिंसा विरोधी हिंसा है। दूसरी प्रतिमा से श्रावक संकल्पी हिंसा का तो प्रतिज्ञा पूर्वक त्यागी होता है, बाकी तीनों प्रकार की हिंसा से भी जितना हो सके उतना बचने का प्रयास करता है। प्रवेश : यह श्रावक संकल्पी हिंसा का प्रतिज्ञापूर्वक त्यागी है, विरोधी हिंसा का नहीं। जबकि विरोधी हिंसा में तो संज्ञी पाँच इन्द्रिय मनुष्यों का प्राण घात होता है, जो संकल्पी हिंसा में शायद ही होता हो। समकित : हिंसा और अहिंसा का संबंध क्रिया से नहीं, अभिप्राय और परिणामों (भावों) से है। संकल्पी हिंसा में अभिप्राय और परिणाम मारने के हैं जबकि विरोधी हिंसा में मुख्यरूप से बचाने (रक्षा) के। 2. सत्याणुव्रतः व्यवहार असत्य मुख्य रूप से चार प्रकार के हैं: (अ) सतू का अपलापः जो है, उसको नहीं है ऐसा कहना सत् का अपलाप है। असत् का उद्भावनः जो नहीं है, उसको है ऐसा कहना असत् का उद्भावन है। (स) अन्यथा प्ररूपणः कुछ का कुछ कहना, अन्यथा प्ररूपण है। (द) गर्हित वचनः आगम-विरुद्ध, निंदनीय, कलहकारक, पर पड़ीकारक, हिंसा-पोषक, पर-अपवाद कारक आदि वचनों को गर्हित वचन कहते हैं। यह श्रावक सभी प्रकार के असत्यों का अणु (आंशिक /एकदेश) रूप से त्यागी होता है।अतः इसके इस व्रत को सत्याणुव्रत कहते हैं। 1.household-tasks 2.cheap 3.provoking 4.hurting 5.violent 6.rumourous