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________________ पाँचवे गुणस्थान वाले श्रावक की प्रतिमायें समकित : आज हम पाँचवे गुणस्थान वाले यानि कि स्वयं को जानकर, मानकर व स्वयं में दूसरे स्तर की लीनता करने वाले व्रती-श्रावक की प्रतिमाओं की चर्चा करेंगे। प्रवेश : यह प्रतिमायें क्या होती हैं ? समकित : मन, वचन, काय (3) कृत, कारित, अनुमोदना (3) ऐसी नौ (3x3=9) कोटि से पाली जाने वाली प्रतिज्ञाओं को प्रतिमा कहते हैं। प्रवेश : क्या यह प्रतिमायें सिर्फ पाँचवें गुणस्थान वाले श्रावक को ही होती हैं ? समकित : सच्ची तो उनको ही होती हैं और उन्हीं की यह नौ कोटि से पाली जाने वाली प्रतिज्ञायें व्यवहार से मोक्षमार्ग कहलाती हैं। प्रवेश : मिथ्यादृष्टि की प्रतिमाओं का क्या फल होता है ? समकित : मिथ्यादृष्टि की व्रत, प्रतिमायें सच्ची नहीं होती। हाँ यदि वह इनको मंदकषाय और निर्दोष-रीति-से' पालें तो पुण्य का बंध होने से उसके फल में स्वर्गादि प्राप्त होते हैं और यदि तीव्र कषाय यानि कि आकुलता पूर्वक व सदोष पालते हैं तो प्रतिज्ञा भंग होने से पाप का बंध ही होता है और उसके फल में वह दुर्गति को प्राप्त होते हैं। प्रवेश : सच्ची प्रतिमाओं का स्वरूप क्या है ? समकित : जैसा कि हमने पहले देखा है कि चौथे गुणस्थान वाले अविरत सम्यकदृष्टि की आत्मलीनता पहले स्तर की रहती है और वह उस आत्मलीनता (वीतरागता) को बढ़ाने का प्रयास हमेंशा करता रहता है। उसके तीव्र पुरुषार्थ के कारण जब उसकी आत्मलीनता बढ़कर पाँचवें गुणस्थान लायक होने वाली हो तब उसको बाह्य प्रतिज्ञा धारण करने का शुभ राग सहज रूप से आये बिना नहीं रहता यानि कि आता ही 1.flawlessly
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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