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________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 181 इसप्रकार द्रव्यानुयोग का विषय जीव तर्क, हेतु, दृष्टांत व स्वानुभव' आदि के माध्यम से समझ सके ऐसा स्थूल बुद्धिगोचर है। प्रवेश : और करणानुयोग? समकित : करणानुयोग का विषय सूक्ष्म केवलीगम्य होता है। इसमें तर्क काम नहीं करता। इसमें तो भगवान की आज्ञा की प्रधानता है। जैसे-पुद्गल परमाणु आदि सूक्ष्म-पदार्थ, जीव के अबुद्धिपूर्वक होने वाले परिणाम आदि अंतरित-पदार्थ व सुमेरू पर्वत आदि दूरस्थ-पदार्थ / प्रवेश : सूक्ष्म केवलीगम्य मतलब ? समकित : जिन सूक्ष्म, अंतरित व दूरस्थ पदार्थों (चीजों) को हम अपने अल्प ज्ञान से नहीं जान सकते, सिर्फ केवली भगवान का पूर्ण-ज्ञान ही जिनको जान सकता है वे पदार्थ सूक्ष्म केवलीगम्य कहलाते हैं। जैसेचौथे आदि गुणस्थानों में जब निश्चय धर्म-ध्यान होता है तब जीव शुद्ध-भाव का वेदन" करता है लेकिन वहाँ अबुद्धिपूर्वक शुभ-भावरूप सूक्ष्म रागांश (बाकी रहा राग) भी होता है, जो उस समय उस जीव के ज्ञान (उपयोग) का विषय नहीं बनता लेकिन केवली के ज्ञान में वह बराबर" जानने में आता है। ऐसे सूक्ष्म केवलीगम्य परिणामों की बात करणानुयोग में आती है। प्रवेश : तो क्या इसीलिये करणानुयोग, चौथे आदि गुणस्थानों में होने वाले निश्चय धर्म-ध्यान को शुभ-राग रूप बताता है और द्रव्यानुयोग (अध्यात्म ग्रंथ) शुद्ध-भाव रूप ? समकित : हाँ, बिलकुल ! इसी अपेक्षा से द्रव्यानुयोग का विषय स्थूल है। क्योंकि सूक्ष्म केवलीगम्य परिणामों की बात उसमें नहीं आती, वह तो सिर्फ उस स्थूल परिणाम का कथन करता है जिसका ज्ञान/वेदन जीव कर सकता है। 1.self-realization 2.experiencable 3.unexperiencable 4.logic 5.instruction 6.molecule 7.micro-substances 8.subconscious-thoughts 9.internal-substances 10.remote-substances 11.experience 12.properly 13.thoughts
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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