________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 177 इस तरह चरणानुयोग भी वीतरागता का ही पोषक होने से, उसमें भी राग करने का उपदेश नहीं है। बस आंशिक वीतरागियों को होने वाले भूमिका प्रमाण शुभ-राग व क्रिया रूप व्यवहार धर्म का ज्ञान कराया है, लेकिन पोषण तो वीतरागता का ही किया है, क्योंकि प्रयोजन तो वीतरागता के पोषण का ही है। समकित : करणानुयोग की विषय-वस्तु मुख्यरूप से द्रव्य-कर्म हैं यानि कि जो जीव द्रव्यानुयोग के अनुसार स्वयं को जानते, मानते व उसमें लीन होते हैं. ऐसे वीतराग मार्ग में चलने बाले जीवों के द्रव्य-कमों की स्थिति कैसी होती है और जो ऐसा नहीं करते, ऐसे संसार मार्ग में चलने वाले जीवों के द्रव्य कर्मों की स्थिति कैसी होती है, यह ज्ञान करणानुयोग में कराया है। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि भले ही करणानुयोग की विषय-वस्तु मुख्य रूप से द्रव्य-कर्म आदि हैं लेकिन पोषण तो उसमें भी वीतरागता का ही किया गया है, यानि कि करणानुयोग का सार भी वीतरागता ही है। समकित : हाँ, बिलकुल ! प्रथमानुयोग की विषय वस्तु मुख्यरूप से महापुरुषों की कहानियाँ हैं यानि कि जो जीव द्रव्यानुयोग के अनुसार शुद्धात्मा को जानते, मानते व उसमें लीन होते हैं, ऐसे वीतराग मार्ग पर चलने वाले जीवों का जीवन कैसा होता है इसका ज्ञान प्रथमानयोग (कथानयोग) में कराया है। यानि कि प्रथमानुयोग में भी प्रेरणा वीतरागता की ही दी है। मतलब प्रथमानुयोग का सार भी वीतरागता ही है। प्रवेश : अरे वाह ! चारों अनुयोगों का सार वीतरागता है, चारों अनुयोगों में वीतरागता का ही पोषण और प्रेरणा है। यह तो कभी सोचा ही नहीं था। समकित : हाँ और इसका कारण यह है कि हम चारों अनुयोगों का स्वाध्याय तो करते हैं लेकिन चारों अनुयोगों का प्रयोजन, शैली व अर्थ निकालने की पद्धति को नहीं समझते। प्रवेश : चारों अनुयोगों का प्रयोजन, शैली व अर्थ निकालने की पद्धति का क्या मतलब है? 1.partial 2.confirmation 3.position 4.genre 5.technique