________________ चार-अनुयोग समकित : जैसा कि हम जानते हैं कि जिनवाणी चार अनुयोगों में बँटी हुई है : 1. प्रथमानुयोग(कथानुयोग) 2. करणानुयोग(गणितानुयोग) 3. चरणानुयोग 4. द्रव्यानुयोग यह चारों ही अनुयोग जिनेन्द्र भगवान की वाणी हैं और जिनेन्द्र भगवान वीतरागी हैं इसलिये चारों ही अनुयोग वीतरागता के पोषक (प्रेरक) हैं। यानि कि चारों अनुयोगों का सार वीतरागता ही है। ऐसा होने पर भी चारों अनुयोगों की शैली व विषयवस्तु अलगअलग है। प्रवेश : मतलब? समकित : जहाँ द्रव्यानुयोग की विषयवस्तु मुख्यरूप-से द्रव्य-गुण-पर्याय व नव-तत्वों में छुपी हुई आत्मज्योति यानि कि शुद्धात्मा और उसका ज्ञान, श्रद्धान व ध्यान (लीनता) है,तो वहीं चरणानुयोग की विषयवस्तु द्रव्यानुयोग के अनुसार शुद्धात्मा को जानने, मानने व उसमें लीन होने वाले, यानि कि वीतराग मार्ग पर चलने वाले जीवों को होने वाला भूमिका योग्य (पूर्वचर-सहचर-उत्तरचर) शुभ-राग व बाह्य क्रिया है। प्रवेश : चरणानुयोग की विषय वस्तु तो बाह्य-आचरण है न ? समकित : अरे भाई ! चरणानुयोग बताता है कि शुद्धात्मा को जानने, मानने व उसमें लीन होने वाले सम्यकदृष्टि व्रती-श्रावक व मुनिराज, यानि कि वीतराग मार्ग (मोक्षमार्ग) पर चलने वाले जीवों को किस प्रकार का व्रत आदि बाह्य आचरण पालने का शुभ-राग व बाह्य क्रिया हुए बिना नहीं रहती, होती ही है। 1. divisions 2.essence/summary 3.genre 4.theme 5.mainly