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________________ जीव-अजीव तत्व संबंधी भूल समकित : जैसा कि हमने पिछले पाठों में देखा कि प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ निर्णय बिना सम्यकदर्शन की प्राप्ति असंभव है और सम्यकदर्शन के बिना सच्चे सुख की प्राप्ति असंभव है। इस पाठ में हम देखेंगे कि एसे इन प्रयोजनभूत तत्वों के संबंध में कि इसको सम्यकदर्शन प्रगट नहीं होता यानि कि सच्चे सुख की प्राप्ति के मार्ग का द्वार नहीं खुलता। प्रवेश : जी भाईश्री ! समकित : अनादि से तो यह जीव निगोद (साधारण-वनस्पति) में ही जन्म-मरण करता था। किसी विशेष प्रकार की कषाय की मंदता (शुभ-भाव) के कारण यह जीव निगोद से बाहर निकलकर त्रस पर्याय में आया उसमें भी असंज्ञी (मन-रहित) पाँच इंद्रिय जीव हुआ, सो यहाँ तक तो उसको तत्व विचार-शक्ति ही प्रगट नहीं थी। प्रवेश : भाईश्री जब निगोद में मन ही नहीं होता, तो शुभ-भाव कैसे हुए ? समकित : सहज काललब्धि से और वैसे भी मन ज्ञान गुण की पर्याय है व शुभ-भाव चारित्र गुण की। प्रवेश : फिर आगे ...? समकित : फिर भाग्य से संज्ञी (मन-सहित) पाँच इंद्रिय जीव की पर्याय इसको प्राप्त हुई, उसमें भी मनुष्य आयु , आर्य देश, जैन कुल, परिणामों में विशद्धि, भगवान की वाणी को सुनना-पढ़ना आदि दुर्लभ से दुर्लभ संयोग इसको प्राप्त हुए लेकिन इस सबके बाद भी आत्म कल्याण में बाधक, जो प्रयोजनभूत तत्वों संबंधी भूल इसकी रह जाती हैं, एकएक करके हम उन भूलों की चर्चा करते हैं: / 1.impossible 2.inborn 3.thinking-ability 4.thinking-ability 5.automatically
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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