________________ समकित-प्रवेश, भाग-6 161 मोक्ष, शुद्धि-की-पूर्णतारूप' होने से व परम-सुख स्वरूप होने से प्रगट करने के लिये सर्वथा उपादेय तत्व है। प्रवेश : लेकिन भाईश्री ये संवर, निर्जरा, मोक्ष तत्व प्रगट होंगे कैसे? समकित : स्व (जीव-तत्व) का आश्रय यानि कि ज्ञान, श्रद्धान व लीनता करने से। इसलिये जीव-तत्व आश्रय करने के लिये परम उपादेय तत्व है। प्रवेश : भाईश्री ! पाप-पुण्य तत्व ? समकित : पाप-पुण्य तत्व, आश्रव-बंध तत्व के ही भेद होने से हेय तत्व हैं। प्रवेश : पाप की तरह पुण्य-तत्व भी हेय तत्व है ? समकित : हाँ। जैसे बेड़ी', लोहे की हो या सोने की, बाँधने का ही काम करती है। वैसे ही बंध, पाप का हो या पुण्य का, जीव को संसार में बाँधने का ही काम करता है। प्रवेश : ऐसे तो लोग पुण्य छोड़कर पाप में लग जायेंगे ? समकित : अरे भाई ! पुण्य के साथ-साथ पाप को भी तो हेय कहा गया है तो फिर पुण्य छोड़कर पाप में जाने का सवाल ही कहाँ रहा ? / जहाँ पुण्य भी हेय है, वहाँ पाप हेय कैसे नहीं होगा? भगवान ने तो पाप-पुण्य रूप अशुद्ध भाव (आश्रव-बंध तत्व) को हेय कहकर, शुद्ध-भाव (संवर, निर्जरा, मोक्ष तत्व) को प्रगट करने के लिये उपादेय कहा है। जिसका एकमात्र उपाय स्व (जीव-तत्व) का आश्रय करना है। यह बात और है कि जब तक पूर्ण शुद्धि (पूर्ण वीतरागता) न हो तब परिणति (पर्याय) में अपनी भूमिका लायक पुण्य-भाव (शुभ-राग) हुये बिना नहीं रहते, यानि कि होते ही है, लेकिन निर्णय (ज्ञान-श्रद्धान) में तो वह उनको आश्रव भाव होने के कारण हेय ही मानता है। 1.complete-purity 2.supremely 3.types 4.shackle 5.achieve 6.State of conduct