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________________ ज्ञेय-हेय-उपादेय समकित : पिछले पाठ में हमने देखा कि प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ निर्णय के बिना सम्यकदर्शन यानि कि सच्चे सुख की प्राप्ति का उपाय नहीं हो सकता और प्रयोजनभूत तत्वों के यथार्थ निर्णय का अर्थ है-ज्ञेय तत्वों को ज्ञेय रूप, हेय तत्वों को हेय रूप और उपादेय तत्वों को उपादेय रूप जानना व मानना। तो सबसे पहले हम ज्ञेय, हेय व उपादेय शब्दों के अर्थ को समझ लेते हैं। ज्ञेय का मतलब होता है जानने योग्य। यानि कि वह सब, जो जानने में आ सकें, वह ज्ञेय तत्व हैं। हेय का मतलब होता है त्यागने योग्य (छोड़ने योग्य)। यानि कि सुखी होने के लिये जिन्हें हमें नियम से' छोड़ना होगा, वह हेय तत्व हैं। उपादेय का मतलब होता है ग्रहण करने योग्य। यानि कि सुखी होने के लिये जिन्हें हमें नियम से ग्रहण करना होगा वह उपादेय तत्व हैं। प्रवेश : भाईश्री ! प्रयोजनभूत तत्वों में कौनसे तत्व ज्ञेय, कौन से तत्व हेय व कौन से तत्व उपादेय हैं ? समकित : सभी जीव एवं अजीव (पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल) ज्ञेय तत्व हैं यानि कि जानने योग्य हैं। मतलब कि यदि ये जानने में आ जायें तो जान लो, इनको जानने मात्र से हमारा कोई नुकसान नहीं होता। आश्रव व बंध यानि कि मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र (मोह, राग-द्वेष आदि) अशुद्धि होने से व दुःख का कारण होने से हेय तत्व हैं। संवर व निर्जरा यानि कि सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र शुद्धि व शुद्धिकी-वृद्धिरूप होने से व सच्चे सुख का कारण होने से प्रगट करने के लिये आंशिक उपादेय तत्व हैं। 1.compulsorily 2.adopt/achieve 3.impurity 4.increasing-purity 5.partially
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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