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________________ व्यवहार नय की उपयोगिता समकित : पिछला पाठ पढ़कर हमारे मन में यह शंका उठना स्वाभाविक है कि यदि सिर्फ परमशुद्ध निश्चय नय के विषयभूत त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा (शुद्धात्मा) के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान से ही आकुलता (दुःख) मिटकर निराकुलता (सच्चे सुख) की प्राप्ति होती है तो फिर व्यवहार नय के विषयभूत आत्मा की बात शास्त्रों में की ही क्यों ? सिर्फ परमशुद्ध निश्चय नय (शुद्धनय) के विषयभूत त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा (शुद्धात्मा) की ही बात शास्त्रों में करनी चाहिये थी। लेकिन ऐसा नहीं है, शास्त्र की कोई भी बात व्यर्थ में नहीं होती। कुछ न कुछ प्रयोजन सहित ही होती है। व्यवहार नय का भी अपना एक प्रयोजन है, उपयोगिता है। प्रवेश : कैसे? समकित : जिस व्यक्ति ने आजतक ज्ञान आदि अनंत गुणों के एक अखंड-पिंड त्रिकाली-ध्रुव भगवान आत्मा (शुद्धात्मा) को ज्ञेय, श्रद्धेय और ध्येय नहीं बनाया लेकिन यह जानने के बाद कि ऐसे शुद्धात्मा को ज्ञेय, श्रद्धेय और ध्येय बनाने से ही दुःख मिटकर, सच्चे सुख की प्राप्ति होती है, वह पूरी दुनिया के चप्पे-चप्पे में उस शुद्धात्मा को खोज रहा था। तब पहले प्रकार के व्यवहार-नय ने उसकी खोज को स्त्री, पुत्र, मकान आदि तक सीमित कर दिया कि जो स्त्री, पुत्र, मकान, दुकान आदि के बीच में रहता है वह आत्मा है। उसके मन में यह प्रश्न उठने पर कि इन सबमें से कौन आत्मा है तब दूसरे प्रकार के व्यवहार नय ने उसकी खोज को और अधिक सीमित कर शरीर तक ला दिया। फिरसे प्रश्न उठने पर कि शरीर का कौनसा अंग आत्मा है तब तीसरे प्रकार के व्यवहार नय ने उसकी खोज को और सीमित करते हुये कहा कि यह मोह, राग-द्वेष के परिणामों को करने वाला ही आत्मा है। 1.purposeless 2.purpose 3.utility4.search 5.limited 6.body-part 7.transformations
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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