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________________ 142 समकित-प्रवेश, भाग-5 इसलिये कथन के निश्चय व्यवहार को समझे बिना जिनागम के गूढ़ रहस्यों को समझ पाना असंभव है। प्रवेश : क्या यही शब्द नय कहलाते हैं ? समकित : हाँ, यह कथन के नय ही शब्द-नय हैं। संपूर्ण जिनागम इन्हीं नयों की भाषा में निबद्ध है। प्रवेश : कृपया इनका स्वरूप उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये ? समकित : जो वस्तु जैसी है, उसको वैसा कहना यह निश्चय नय का कथन कहलाता है और जो वस्तु जैसी नहीं है लेकिन संयोग, निमित्तकारण आदि की अपेक्षा उसे वैसा कहना यानि कि किसी को किसी में मिलाकर कहना, किसी का किसी में आरोप करके कहना वह व्यवहार नय का कथन कहलाता है। जैसे केसर की डिब्बी या घी का घड़ा। यहाँ घड़ा तो वास्तव में मिट्टी का है। इसलिये मिट्टी के घड़े को मिट्टी का घड़ा ही कहना यह निश्चय नय का कथन है। मिट्टी के घड़े को, घड़े में रखे हुये घी का संयोग देखकर, घी का आरोप घड़े पर करके, उसको घी का घड़ा कहना यह व्यवहार नय का कथन है। यानि कि मिट्टी का घड़ा व्यवहार से घी का घड़ा कहने में आता है। प्रवेश : कहने में आता है-इसका क्या अर्थ है ? समकित : इसका मतलब यह है कि घड़ा मिट्टी का ही होता है, घी का नहीं। मात्र संयोग की अपेक्षा व्यवहार से घी का घड़ा कहने में आता है। घी का घड़ा कहना व्यवहार नय होने सम्यकज्ञान रूप ही है, लेकिन ऐसा यथार्थ मानना उल्टी-मान्यता होने से मिथ्यात्व (मिथ्यादर्शन) है। प्रवेश : यह तो हुआ लौकिक उदाहरण। परमार्थं में इसको किसतरह घटायेंगे? 1.written 2.example 3.company 4.formal-causes 5.meaning 6.company 7.worldly 8.spiritual-context
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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