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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 135 पुद्गल द्रव्य हैं लेकिन धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य कितनेकितने हैं ? समकित : इस विश्व (लोक) में धर्म द्रव्य एक है जो पूरे पुरुषाकार' लोक में फैला हुआ है। अधर्म द्रव्य भी एक है और वह भी पूरे पुरुषाकार लोक में फैला हुआ है। आकाश द्रव्य भी एक ही है जो पूरे पुरुषाकार लोक और लोक के बाहर अलोक में भी फैला हुआ है। प्रवेश : लोक के बाहर भी आकाश द्रव्य है ? समकित : हाँ, एक अखंड आकाश द्रव्य ही पूरे लोक और लोक के बाहर अलोक में फैला हुआ है। लोक के अंदर के आकाश द्रव्य को लोकाकाश और लोक के बाहर के आकाश द्रव्य को अलोकाकाश कहते हैं। प्रवेश : और काल द्रव्य ? समकित : काल द्रव्य की संख्या लोक-प्रमाण असंख्यात है। प्रवेश : यह लोक-प्रमाण असंख्यात क्या होता है ? समकित : यह पुरुषाकार लोक असंख्यात प्रदेशी है / लोक के एक-एक प्रदेश पर षट्कोण के आकार का एक-एक कालाणु (काल-द्रव्य) खचित है। दूसरे द्रव्यों की तरह उसकी पर्याय भी लगातार बदलती रहती है। प्रवेश : यह प्रदेश क्या होता है ? समकित : क्षेत्र की सबसे छोटी इकाई को प्रदेश कहते हैं यानि कि क्षेत्र का वह सबसे छोटा टुकड़ा जिसका फिरसे टुकड़ा न हो सके। यानि कि सुई की नोंक से भी बहुत ज्यादा छोटा क्षेत्र प्रदेश कहलाता है। प्रवेश : तो क्या इस लोक (विश्व) में ऐसे असंख्यात प्रदेश हैं ? 1.human-shaped 2.extended 3.integrated 4.uncountable 5.hexagonal 6.fix 7.area 8.unit 9.part 10.further
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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