________________ तालिका [123 '122] [ तर्कसंग्रहः आत्मा (ज्ञानाधिकरणम्)। परमात्मा (th) मन (सुखाद्य पलब्धिसाधनम्) जीवात्मा (अनेक) अनुवाद-[ उपसंहार ] सभी पदार्थों का यथोचितरूप में उक्त पदार्थों में ही अन्तर्भाव हो जाने के कारण सात ही पदार्थ हैं, यह . "सिद्ध होता है। कणाद ( कणादस्येदं काणादम् ) और न्याय के मतों में बालकों * की व्युत्पत्ति (कुशलता) की सिद्धि के लिए विद्वान् अन्नभट्ट ने तर्कसंग्रह बनाया। [श्री महामहोपाध्याय अन्नम्भट्टविरचित तर्कसंग्रह समाप्त ] व्याख्या-शक्ति, सादृश्य आदि समस्त पदार्थों का अन्तर्भाव * पूर्वोक्त द्रव्य, गुण आदि सात पदार्थों में ही हो जाने से सात ही " पदार्थ हैं। __न्यायदर्शन में प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, '. अवयव (प्रतिज्ञा आदि ), तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वा· भास, छल, जाति और निग्रहस्थान ये सोलह पदार्थ माने गये हैं। इन सोलह पदार्थों में जल्प से सेकर निग्रहस्थान पर्यन्त छः पदार्थों का ' मुख्य लक्ष्य है 'विपक्षियों के सिद्धान्तप्रतिपादन में दोषों का उद्घाटन, उनका खण्डन और स्वपक्ष का संरक्षण' / प्रमेय बारह हैं-आत्मा, “शरीर, इन्द्रिय, अर्थ, बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष, प्रेत्यभाव, फल, दुःख और अपवर्ग (मोक्ष)। इसका विचार दीपिका टीका में तथा न्यायशास्त्र के ग्रन्थों में किया गया है, अतः वहीं से देखना चाहिए। // हिन्दी मनीषा-व्याख्या समाप्त / / द्रव्य-विभाजन (1) अनित्य (यण कादि) दिशा काल स्पर्शवत्) स्पर्शवान्) गुणकम्) व्यवहारहेतु:) व्यवहारहेतुः) आकाश (शीतस्पर्शवत्यः) (उष्ण- (रूपरहित- (शब्द- (अतीतादि- (प्राच्यादि वायु तेज जल इन्द्रिय विषय (वायुलोक) (त्वक्) (प्राणादि) शरीर आकरज उदयं (आग) (विद्यु द) (उदराग्नि) (धातुयें) दिव्य / अनिस्य (यण कादिरूप)| भौम विषय इन्द्रिय नित्य (परमाणुरूप) (आदित्यलोक) (चक्षु) शरीर अनित्य (दचणुकादि) विषय / इन्द्रिय (वरुणलोक) (रसना) (नदी आदि) नित्य . (परमाणुरूप) शरीर | नित्य (परमाणु) अनित्य (परमाणु) (धणुकादि) नित्य पृथिवी (गन्धवती) इन्द्रिय विषय (हमारा) (प्राण) (घटादि) शरीर