________________ वाक्यं शाब्दज्ञानञ्च ] [ 107 106 ] [ तर्कसंग्रहः दो पदों का उच्चारण एक-एक घण्टे के बाद किया जायेगा तो शाब्दबोध नहीं होगा। यदि एक साथ (शीघ्रता से या प्रथम शब्दश्रवण का संस्कार जितनी देर तक ठहरता है उतने समय के अन्दर) उच्चारण करते हैं तो शाब्दबोध होता है। इस तरह सन्निधि भी शाब्दबोध के प्रति कारण है। विश्वनाथ ने कारिकावली (82) में तात्पर्यज्ञान को चतुर्थ कारण , माना है-'आसत्तिर्योग्यताकाङ्क्षातात्पर्यज्ञानमिष्यते' / यहाँ 'आसत्ति' का अर्थ है 'सन्निधि' / तात्पर्यज्ञान, जैसे -- 'सैन्धवमानय' में सैन्धव के दो अर्थ हैं-नमक और घोड़ा। यदि वक्ता भोजन कर रहा है तो , वक्ता का 'नमक' के अर्थ में तात्पर्य है, यदि बाहर जा रहा है तो 'घोड़ा' के अर्थ में तात्पर्य है / यह तात्पर्यज्ञान भी वाक्यार्थज्ञान में हेतु है। जो इसे कारण नहीं मानते हैं उनके अनुसार यहाँ योग्यताज्ञान कारण है। [वाक्यं कतिविधम् ] वाक्यं द्विविधं वैदिकं लौकिकं च / वैदिकमीश्वरोक्तत्वात्सर्वमेव प्रमाणम। लौकिकं त्वाप्ताक्तं प्रमाणम् / अन्यदप्रमाणम् / अनुवाद -[वाक्य कितने प्रकार का है?] वाक्य दो प्रकार का है-वैदिक और लौकिक / वैदिक ईश्वरोक्त होने से सभी प्रमाण है। आप्त व्यक्ति के द्वारा उक्त लौकिक वाक्य प्रमाण है, शेष . | . [मिथ्यावादियों के द्वारा उक्त ] अप्रमाण / व्याख्या-वाक्य दो प्रकार के हैं-वैदिक और लौकिक / वैदिक वाक्य ईश्वरोक्त होने से सभी प्रमाण हैं। लौकिक वाक्य यदि यथार्थवक्ता द्वारा कहे गये हैं तो प्रमाण हैं अन्यथा अप्रमाण / वेदों को मीमांसक अपौरुषेय एवं नित्य मानते हैं परन्तु नैयायिक उन्हें ईश्वर के द्वारा रचित मानते हैं तथा शब्द को अनित्य मानते हैं / आकाश के नित्य होने से उसके गुण को भी नित्य होना चाहिए यह आवश्यक नहीं है। नैयायिक शब्द की अनित्यता अनुमान से सिद्ध करते हैं-'शब्दोऽनित्यः, सामान्यवत्त्वे सति बहिरिन्द्रियजन्यलौकिकप्रत्यक्षविषयत्वात्, लौकिकप्रत्यक्षविशेष्यत्वाद्वा, घटवत्' / वैदिक वाक्यों में श्रुति ( संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद्) के साथ स्मृति, इतिहास और पुराण का भी संग्रह किया जाता है। [शाब्दज्ञानं किम् ? | वाक्यार्थज्ञानं शाब्दज्ञानं / तत्करण तु शब्दः / अनुवाद-[शाब्दज्ञान का स्वरूप क्या है ? ] वाक्य के अर्थ का' ज्ञान शान्दशान है / उसका करण शब्द है। व्याख्या-शाब्दज्ञान जो कि प्रमा है उसका करण है 'शब्द'। यहाँ शब्द से तात्पर्य है 'वाक्य' या 'पदसमूह' / नव्यनैयायिक पदज्ञान को करण मानते हैं। जैसा कि कारिकावली (81) में विश्वनाथ ने कहा है पदज्ञानं तु करणं द्वारं तत्र पदार्थधीः / शाब्दबोधः फलं तत्र शक्तिधीः सहकारिणी॥ अर्थ-शाब्दबोध के प्रति पदज्ञान करण है, पदार्थज्ञान व्यापार (द्वार ) है, शाब्दबोध फल है और शक्तिशान सहायक है। अर्थात् 'शक्तिज्ञानसहकृतपदज्ञानजन्यपदार्थोपस्थितिः शाब्दबोधं प्रति कारणम्' शक्तिज्ञान से सहकृत पदज्ञान से उत्पन्न पदार्थ की उपस्थिति ( स्मरण ) शाब्दबोध के प्रति कारण है। ___ वैशेषिक शब्दप्रमाण का अनुमान में ही अन्तर्भाव मानते हैं'एते पदार्थाः परस्परसंसर्गवन्तः, आकाङ्क्षायोग्यतासत्तिमत्पदस्मारितत्वात्, दण्डेन गामानयेति पदस्मारितपदार्थवत्' / वस्तुतः अनुमिति से शाब्दबोध भिन्न है। इसी सन्दर्भ में प्रमाणों के प्रामाण्य और अप्रामाण्य की चर्चादीपिका टीका में की गई है। संक्षेप में सांख्य प्रामाण्य और अप्रामाण्या