________________ 104 ] [ तर्कसंग्रहः [वाक्यार्थज्ञाने के हेतवः, तेषां लक्षणानि च कानि ? ] आकाङ्क्षा योग्यता सन्निधिश्च वाक्यार्थज्ञाने हेतुः। पदस्य पदान्तरव्यतिरेकप्रयुक्तान्वयाननुभावकत्वमाकाङ्क्षा / अर्थाबाधो योग्यता। पदानामविलम्बेनोच्चारणं सन्निधिः। तथा च आकाङक्षादिरहितं वाक्यमप्रमाणम् / यथा गोरश्वः पुरुषा हस्तीति न प्रमाणमाकाङ्क्षाविरहात् / वह्निना सिञ्चेदिति न प्रमाणं योग्यताविरहात् / प्रहरे प्रहरेऽसहोच्चारितानि गामानयेत्यादिपदानि न प्रमाणं, सान्निध्याभावात् / ___अनुवाद-[वाक्यार्थज्ञान के हेतु कितने हैं और उनके लक्षण क्या हैं ? ] वाक्यार्थज्ञान (शाब्दबोध) में तीन हेतु हैं--आकाङ्क्षा, योग्यता और सन्निधि। दूसरे पद के प्रयोग के विना जहाँ पद की शाब्दबोधजनकता नहीं होती है, उसे आकांक्षा कहते हैं / पद में पदान्तरव्यतिरेकप्रयुक्त जो अन्वयाननुभावकत्व है वही आकाङ्क्षा है)। अर्थ में बाधा का अभाव ( अर्थाबाध ) योग्यता है। पदों का अबिलम्ब (विलम्ब के विना) उच्चारण सन्निधि है। एवञ्च, आकांक्षा आदि से रहित वाक्य अप्रमाण है। जैसे-'गाय, घोड़ा, पुरुष, हाथी' यह पदसमूह आकाङ्क्षा से रहित होने के कारण प्रमाण नहीं है। 'आग से सींचिए' यह पदसमूह योग्यता से रहित होने के कारण प्रमाण नहीं है। प्रहर-प्रहर में (एक एक प्रहर के बाद उच्चारण किये गये ) एक साथ उच्चारण नहीं किए गये 'गायलाओ' इत्यादि पदसमूह सान्निध्य ( सामीप्य ) से रहित होने के कारण प्रमाण नहीं है। व्याख्या-वाक्यार्थबोध अथवा शाब्दबोध तभी होता है जब पदसमूह में आकाङ्क्षा, योग्यता और सन्निधि हो। इनमें से किसी एक का अभाव रहने पर शाब्दबोध नहीं होगा। इस तरह ये तीनों वाक्यार्थज्ञाने हेतवः ] [105 कारण मिलकर वाक्यार्थ का बोध कराने में कारण हैं, पृथक्-पृथक् नहीं। अतः 'हेतुः' में एक वचन का प्रयोग किया गया है। मूल में, प्रयुक्त आकाङ्क्षादि का अर्थ है-आकाङ्क्षाज्ञान, योग्यताज्ञान और सन्निधिज्ञान ये शाब्दबध के प्रति कारण हैं। (1) आकाङ्क्षा-'पदस्य पदान्तरव्यतिरेकप्रयुक्तान्वयाननुभावक त्वम' जिस पद में किसी दूसरे पद के अभावप्रयुक्त जो शाब्दबोध की अजनकता है, वही आकाङ्क्षा है। अर्थात् साकाङ्क्ष पद ही शाब्दबोध कराते हैं, निराकाक्ष नहीं। न्यायबोधिनी के अनुसार 'जिन पदों का यादृश पूर्वापरीभाव न होने के कारण शाब्दबोध न हो उन पदों का तादृश पूर्वापरीभाव है 'आकाक्षा' / ' जैसे'गामनय' इस वाक्य में जो 'गो' पद है उसका शाब्दबोध 'अम्' पद के बिना नहीं होता, क्योंकि 'गो आनय' इस वाक्य से अर्थ प्रतीत नहीं होता। अतः 'गामानय' इस वाक्य के अर्थज्ञान ( शाब्दबोध) में गोपदोत्तर 'अम्' पद की आकाङ्क्षा हेतु है। 'अम्' प्रत्यय का अर्थ है 'कर्मत्व' / अतः 'गाम्' पद का अर्थ हुआ 'गोकर्मक' | 'अम् गो' ऐसा विपरीत उच्चारण करने पर शाब्दबोध नहीं होगा। इसी प्रकार 'आनय' में 'नी' धातु का अर्थ है 'लाना', और लोट् लकार मध्यम पुरुष एकवचन का अर्थ है 'आदेश' / गो, अश्व, पुरुष आदि पदसमूह आकाङ्क्षारहित होने से प्रमाण नहीं है। अत: आकाङ्क्षाज्ञान शाब्दबोध के प्रति कारण है। (2) योग्यता--'अर्थाबाधो योग्यता' अर्थ के बाध का अभाव योग्यता है। जैसे-'वह्निना सिञ्चेत्' यहाँ सिञ्चनक्रिया की योग्यता आग में बाधित है, अतः इस वाक्य से शाब्दबोध नहीं होता। परन्तु जब हम' 'जलेन सिञ्चेत्' कहते हैं तो जल से सिचनक्रिया संभव होने से (बाधाभाव होने से शाब्दबोध हो जाता है। (3) सन्निधि-'पदानामविलम्बेनोच्चारणम्' पदों का विना अन्तराल के उच्चारण सन्निधि है। जैसे-'गाम् आनय' / यदि इन