________________ [ तर्कसंग्रहः द्रव्यनामानि ] शक्ति उत्पन्न हो जाती है। अतः शक्ति को भी अष्टम पदार्थ मानना. गति न होने से भी वायु में अन्तर्भाव नहीं हो सकता है। चाहिए। भास्वर रूप और उष्ण स्पर्श न होने से तेज में, शीत स्पर्श न होने उत्तर-नहीं, क्योंकि मणि का अभाव ही दाह के प्रति कारण तथा नील वर्ण होने के कारण जल में, गन्ध न होने तथा स्पर्श न होने है। मणि के संयोग-वियोग को भी पदार्थ मानने पर अनन्त शक्तियों से पृथिवी में भी तमस् का अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता है अर्थात् की तथा उनके अभाव, ध्वंस आदि की कल्पना करनी पड़ेगी। अतः निर्गन्ध होने से पृथिवी में तथा नीलरूप होने से तमस् का जलादि में सात ही पदार्थ हैं। अन्तर्भाव नहीं हो सकता है। अतः यह एक 'दसवाँ' स्वतन्त्र द्रव्य है, [द्रव्याणि कति, कानि च तानि ? ] तत्र द्रव्याणि फिर नौ ही द्रव्य कैसे हुए? पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव / उत्तर-'तमस्' केवल तेज का अभाव मात्र है, स्वतन्त्र द्रव्य नहीं। तमस् में नीलवर्ण तथा गति की प्रतीति भ्रमात्मक है। दीपक अनुवाद-[ द्रव्य कितने हैं और वे कौन हैं ? ] उनमें (द्रव्यादि के अपसरण की क्रिया के कारण ही 'नीलं तमश्चलति' में चलन सात पदार्थों में) (1) पृथिवी, (2) जल, (3) तेज, (4) वायु, (5) क्रिया की भ्रमात्मक प्रतीति होती है। तेज को अन्धकार का आकाश, (6) काल, (7) दिशा, (8) आत्मा और (9) मन--ये नौ अभाव नहीं माना जा सकता है क्योंकि तेज में उष्ण स्पर्श पाया जाता है। किञ्च, रूपवान् द्रव्य को देखने के लिए प्रकाश की व्याख्या-द्रव्य के चार प्रकार से लक्षण किए जाते हैं-(१) आवश्यकता पड़ती है जबकि अन्धकार को देखने के लिए प्रकाश की द्रव्यत्वजातिमत्त्वम् (जिसमें द्रव्यत्व जाति रहती है), (2) गुणवत्त्वम् आवश्यकता नहीं होती। अन्धेरे में नील रूप का प्रत्यक्ष उसी प्रकार (जिस में गुण रहते हैं। इस परिभाषा में अव्याप्ति दोष है क्योंकि भ्रम है जिस प्रकार आकाश में नीलरूप का प्रत्यक्ष भ्रम है। वस्तुतः नैयायिकों के अनुसार द्रव्य जिस क्षण में उत्पन्न होता है उस क्षण में 'प्रौढप्रकाशकतेजःसामान्याभावः' (प्रौढ प्रकाशक तेज सामान्य वह निर्गुण होता है। अतः इस दोष को दूर करने के लिए नैयायिक ... का अभाव ) ही तमस् है। अतः द्रव्य नौ ही हैं। अन्य लोग भी परिष्कृत भाषा में लक्षण भिन्न प्रकार से करते हैं। (3) अन्धकार को द्रव्य नहीं मानते हैं। तेज को सभी द्रव्य मानते हैं। क्रियावत्वम् ( जिसमें क्रिया पाई जाए) और (4) समवायि [कति गुणाः, के च ते ] रूपरसगन्धस्पर्शसंख्यापरिमाणकारणत्वम् ( जिसमें समवायिकारणता पाई जाए) / ये सभी / परिभाषाएँ पारिभाषिक हैं जो न्यायदर्शन के सिद्धान्तों को समझे / * पृथक्त्वसंयोगविभागपरत्वापरत्वगुरुत्वद्रवत्वस्नेहशब्दबुद्धिसुम्बबिना समझ में नहीं आ सकती हैं। दुःखच्छाद्वेषप्रयत्नधर्माधर्मसंस्काराश्चतुर्विशतिर्गुणाः। प्रश्न-'तमस्' (अन्धकार ) को दसवां द्रव्य मानना चाहिए ____ अनुवाद-[ गुग कितने हैं और वे कौन हैं ?]-गुण चौबीस क्योंकि उसमें गुण और क्रिया पाई जाती है। जैसे--नील तमश्चलति हैं-(१) रूप, (2) रस, (3) गन्ध, (4) स्पर्श, (5) ( काला अन्धकार चलता है)। यहाँ तमस् में 'रूप' गुण होने से संश्या, (6) परिमाण, (7) पृथक्त्व, (8) संयोग, (9) उसका वायु, आकाश आदि 6 में अन्तर्भाव नहीं हो सकता है। वायु, विभाग, (10) परत्व, (11) परत्व, (12) गुरुत्व, (13) आकाश काल,आदि रूपरहित हैं। तमस् में स्पर्श न होने से तथा द्रवत्व, (14) स्नेह (15) शब्द, (16) बुद्धि, (17) सुख,