________________ 2] [ तर्कसंग्रहः पदार्थनामानि ] इस तरह परम्परया मङ्गल भी ग्रन्थ-रिसमाप्ति के प्रति कारण या प्रमिति का विषय भी होगा। ऐसे ज्ञेय तत्त्व को ही यहाँ पदार्थ है। वह मङ्गल ग्रन्थ के बाहर मानसिक आदि रूप से अथवा पूर्व- शब्द से कहा गया है। जन्मकृत भी हो सकता है। इतना विशेष है कि किया गया मङ्गल - विभिन्न दार्शनिकों ने पदार्थों की संख्या विभिन्न प्रकार से मानी निर्विघ्न ग्रन्थ-समाप्ति के लिए है तथा लिखा गया मङ्गल निविन है। जैसे-गौतम मुनि ने प्रमाण, प्रमेय आदि 16 पदार्थ माने हैं। अन्थ-समाप्ति के साथ-साथ शिष्य-शिक्षा के लिए भी है। सांख्यदर्शन में 25 तत्त्व माने गये हैं। वस्तुतः विभिन्न दर्शनों में प्रश्न-'बाल:' और 'तर्कसंग्रह' का क्या अर्थ है ? पदार्थ शब्द का प्रयोग किमी एक विशेष अर्थ में नहीं किया गया है, " अपितू तत्तत् दर्शनों के प्रतिपाद्य विषयों के लिए पदार्थ शब्द का उत्तर--बाल:-'अधीतव्याकरण-काव्यकोशोऽनधीतन्यायशास्त्रो / प्रयोग हुआ है। गौतम मुनि के 16 पदार्थों का अन्तर्भाव इन्हीं 7 बालः' जिनने व्याकरण आदि के ग्रन्थों का अध्ययन तो कर लिया : पदार्थों में आगे बतलाया जाएगा। प्रारम्भ में कणाद मुनि ने 6 है परन्तु न्यायशास्त्र नहीं पढ़ा है ऐसा बालक (न शिशु और न " पदार्थों का ही विवेचनं किया था जिसमें परवर्ती टीकाकारों ने अभाव प्रौढ)। तर्कसंग्रहः-'तय॑न्ते - प्रमितिविषयी क्रियन्त इति ताः / जोड़कर 7 पदार्थ कर दिये ऐमा कुछ लोग कहते हैं, परन्तु उनके ग्रन्थ द्रव्यादिसप्तपदार्थाः तेषांः संग्रहः-संक्षेपेणोद्देश-लक्षण परीक्षा यस्मिन् में ऐसी बात नहीं है। स ग्रम्प:' जो यथार्थज्ञान के विषय किए जाते हैं ऐसे द्रव्यादि सात प्रश्न -जब द्रव्य, गुण आदि का प्रक-पृथक निर्देश करने से ही पदार्थों का संक्षेप से उद्देश (परिगणन नामोल्लेख मात्र, जैसे सात की संख्या का बोध हो जाता है तो फिर सप्त पद क्यों दिया? द्रव्य, गुण इत्यादि। उद्देश का फल है 'पक्ष का शान' ), लक्षण उत्तर-पदार्थ सात से न कम हैं और न अधिक; इसीलिए ( असाधारण धर्म का कथन, जैसे--गन्धवती पृथिवी) और परीक्षा 'सप्न' पद का प्रयोग किया गया है। (लक्षण की युक्तियुक्तता का विचार ) जिसमें है, ऐसा तर्क संग्रह प्रश्न-न्याय दर्शन में 'गुण' समवाय सम्बन्ध से केबल द्रव्य में नामक ग्रन्थ / पाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में 'यह है एक', 'यह है एक' इस प्रकार 1. उद्देश-करणम् "मनत्व' संख्या जो गुण है वह गुणादि में कैसे रहेगी? [पदार्थाः कति, कानि च तेषां नामानि ? ] द्रव्यगुण उत्तर--पर्याप्ति नामक स्वरूप-सम्बन्ध से गुणादि में भी गुण कर्मभामान्यविशेषसमवाय भावाः सप्त पदार्थाः / 3 का अस्तित्व माना गया है। ऐसा न मानने पर 'एक रूपम्' / यह एक रूप है ) इत्यादि अनुभूतियाँ नहीं हो सकेंगी। यहाँ एकत्व संख्या अनुवाद -[ पदार्थ कितने हैं. और उनके क्या नाम हैं ? ] पदार्थ और रूप दोनों गुण हैं। अनुभूति के आधार पर यहाँ गुण में गुण सात है | और उनके क्रमश: नाम हैं]-(१) द्रव्य, (2) गुण, (3) कर्म, का अस्तित्व समवाय सम्बन्ध से न मानकर पर्याप्ति सम्बन्ध से (4) गामान्य, (5. विशेष, (6) समवाय और (7) अभाव।। माना गया है। अतः सप्तत्व संख्या का गुणादि से सम्बन्ध बन भाल्पा-'पदस्यार्थः पदार्थ इति व्युत्पत्त्या अभिधेयत्वं पदार्थ- जाता है। सामान्यलक्षणम्' अर्थात् अभिधेयत्व, ज्ञेयत्व, प्रमितिविषयत्व आदि / प्रश्न-चन्द्रकान्त मणि-विशेष के रहने पर आग में दाहकता शब्दों से पदार्थ का बोध होता है। अतः जो ज्ञेय होगा वह अभिधेय। शाक्ति नहीं देखी जाती और मणि के हटा लेने पर आग में दाहानुकल