________________ 48 ] [ तर्कसंग्रहः करण-कारण-कार्यलक्षणानि ] [49 अपितु रजतत्वाभाववद्विशेष्यक है क्योंकि यहाँ वास्तविक रजत का पदवाच्यः' (यह पशु गवय' शब्द-वाच्य है) इस प्रकार का ज्ञान अभाव है / अतः अयथार्थ ( मिथ्या, अप्रमा) है: यथार्थोपमिति है। 'अहं गच्छामि' ( मैं जाता हूँ) इस वाक्प से [ यथार्थानुभवभेदाः के, के चानुभवानां करणानि ?] जन्य-ज्ञान 'गमनानुकूल कृतिमानहम्' (गमनव्यापार के अनुकूल कृति वाला मैं हूँ ) यह शाब्दबोधात्मक यथार्थ ज्ञान है। आगे इस विषय यथार्थानुभवश्चतुर्विधः-प्रत्यक्षाऽनुमित्युपमितिशाब्दमेदात् / / का विस्तार से विचार किया जायेगा। तत्करणमपि चतुर्विधं प्रत्यक्षाऽनुमानोपमानशब्दभेदात् / . [करणस्थ, कारणम्य कार्यस्य च कानि लक्षणानि ? ] अनुवाद-[ यथार्थानुभव के कितने भेद हैं और अनुभवों के / असाधारणं कारणं करणम् / कार्यनियतपूर्ववृत्ति कारणम् / कार्य करण कितने प्रकार के हैं ?] प्रत्यक्ष, अनुमिति, उपमिति और शाब्द के भेद से यथार्थानुभव चार प्रकार का है। उनके करण प्रागभावप्रतियोगि। (असाधारण कारण ) भी [ क्रमशः ] चार प्रकार के हैं-प्रत्यक्ष, ____ अनुवाद -[ करण, कारण और कार्य के क्या लक्षण हैं ? ] अनुमान, उपमान और शब्द / [कार्य के प्रति ] जो असाधारण' (विशेष) कारण होता है उसे व्याख्या-'मानाधीना मेयसिद्धिः' पदार्थ मात्र की सिद्धि प्रमाण करण कहते हैं। कारण उसे कहते हैं जो [घटादि ] कार्यों की के अधीन है। इस नियम के अनुसार यहाँ यह विचार प्रस्तुत है कि उत्पत्ति के पहले नियत रूप से (अवश्य ) रहे [ जैसे-घट के प्रति हमारा जो अनुभव है वह यथार्थ है अथवा अयथार्थ. इसका निर्णय दण्ड, चक्र, कुलाल आदि ] / कार्य वह है जो प्रागभाव का कैसे हो? इसी प्रयोजन से ज्ञान को प्राप्त करने वाले साधनों की प्रतियोगी हो। प्रामाणिकता का निश्चय किया जाता है। प्रमाण का स्वरूप है व्याख्या-करण, कारण और कार्य ये तीनों शब्द देखने में अत्यन्त 'प्रमाया: करणं प्रमाणम्' ( यथार्थ ज्ञान का असाधारण साधन सरल हैं परन्तु न्यायदर्शन की पद्धति में समझना थोड़ा कठिन है। प्रमाण है)। प्रमाण की परिभाषायें विभिन्न दर्शन के ग्रन्थों में विभिन्न ! * सामान्यरूप से उत्पन्न घटादि को 'कार्य' कहते हैं। कार्योत्पत्ति में प्रकार से मिलती हैं। अयथार्थ ज्ञान का कारण है इन्द्रिय आदि सहायक तथा कार्योत्पत्ति से पहले रहने वाले मिट्टी, दण्ड, चक्रादि को बाह्य कारणों में दोष होना। जैसे--आँख में पीलिया रोग के होने कारण' कहते हैं। कार्योत्पत्ति के प्रति जो असाधारण ( विशेष) पर सफेद शङ्ख भी पीला दिखलाई पड़ता है। न्यायदर्शन के परतः कारण होता है उसे 'करण' कहते हैं। प्रामाण्यवादी होने से वहाँ ज्ञान की प्रामाणिकता के लिए अन्य साधन को खोजा जाता है। आत्मा, इन्द्रिय, मन आदि से प्रमाण करण-विचार-करण को समझने के पूर्व कारणों के दो प्रकारों पृथक् है। को जानना आवश्यक है (1) साधारण कारण और (2) असाधारण कारण / साधारण कारण वे हैं जो समस्त कार्यों के प्रति कारण घट में 'अयं घट.' (यह घड़ा है) इस प्रकार का ज्ञान होना होते हैं। जैसे-ईश्वर, काल, अदृष्ट आदि। असाधारण कारण प्रत्यक्षात्मक यथार्थानुभव है। पर्वत में धूम को देखकर 'पर्वतो वह्निमान' (पर्गत आगवाला है) इस प्रकार का ज्ञान होना यथार्थानु वे हैं जो सभी कार्यों के प्रति कारण नहीं होते परन्तु घट, पट आदि तत्तत् कार्यों के प्रति कारण-विशेष होते हैं। ये सभी कारणमिति है। गाय के सदृश गवय (वन पशु ) को देखकर 'अयं गवब