________________ 24 ] [ तर्कसंग्रहः फिर क्यों गुण पद अधिक दिया गया ? उत्तर-न्यायबोधिनीकार का कहना है कि आकाश में एक शब्द मात्र ही विशेष गुण रहता है, अन्य विशेष गुण नहीं, अतः यहाँ गुण शब्द का प्रयोग विशेष गुण के अर्थ में किया गया है / वाक्यवृत्तिकार तथा सिद्धान्तचन्द्रोदयकार के अनुसार यहाँ गुण शब्द का प्रयोग भाट्ट-मीमांसकों के सिद्धान्त का खण्डन करने के लिए किया गया है क्योंकि वे शब्द को पदार्थ मानते हैं, गुण नहीं। शब्द एक जन्य-विशेषगुण है परन्तु वह संयोग-जन्य नहीं है। परमाणुओं के जन्यविशेषगुण संयोग-जन्य हैं। अतः सर्वदर्शनसंग्रह में आकाश को प्रकारान्तर से 'संयोगाजन्यजन्यविशेषगुणसमानाधिकरणविशेषाधिकरणम्' कहा है। [कालस्य किं लक्षणं, कति च भेदा: 1] अतीतादिव्यवहारहेतुः कालः / स चैको विभुनित्यश्च / ___अनुवाब-[ काल का क्या स्वरूप है और उसके कितने भेद हैं ? ] अतीत (भूत ) आदि ( भविष्य एवं वर्तमान ) के व्यवहार (वाक्य-प्रयोग ) का जो [ निमित्त ] कारण है उसे काल कहते हैं / अर्थात् जिससे भूत, भविष्य और वर्तमान का व्यवहार होता है उस काल द्रव्य कहते हैं / वह काल द्रव्य एक है, ज्यापक है और नित्य है। व्याख्या- 'या', 'है' और 'होगा' इस प्रकार 'वाक्य-प्रयोग' रूप व्यवहार जिस द्रव्य के आश्रय से हो अथवा जो उक्त व्यवहार के प्रति निमितकारण हो वह काल है। यदि व्यवहारहेतू' मात्र को काल कहेंगे तो 'यह घट है' इस प्रकार के व्यवहार को लेकर घटादि भी काल हो जायेंगे। अत: लक्षण में 'अतीतादिव्यवहारहेतुः' कहा है। यहाँ व्यवहार' शब्द का अर्थ है 'वाक्य-प्रयोग' और 'हेतु' शब्द का अर्थ है 'असाधारण निमित्तकारण'। प्रश्न-व्यवहार ( वाक्य-प्रयोग) समवाय संबन्ध से आकाश में रहता है क्योंकि अतीतादि-व्यवहार शब्दरूप है। अतः आकाश काल-दिशलक्षणे ] [ 25 - कालात्मक व्यवहार का समवायिकारण होने से अतीतादि-व्यवहार का हेतु है, इस तरह लक्षण में अतिव्याप्ति दोष है। यदि इस दोष के निराकरणार्थ काल को निमित्तकारण मानेंगे तो कण्ठ-तालु-संयोग में अतिव्याप्ति होगी क्योंकि कण्ठ-तालु संयोग अतीतादि वाक्यप्रयोग के प्रति निमित्तकारण है। उतर- इस दोष के निराकरणार्थ लक्षण में विभुत्व' पद जोड़ा जाता है अर्थात् 'अतीतादिव्यवहारहेतुत्वे सति विभुत्वं कालत्वम्'। कण्ठ-तालु-संयोग विभु नहीं है, अतः उक्त लक्षण दोषरहित है। दीपिका टीका में दूसरा लक्षण दिया है 'सर्वाधारः कालः सर्वकार्ये निमित्तकारणं च' (काल सबका आधार है और समस्त कार्यों के प्रति निमित्तकारण है)। ईश्वर की इच्छा में अतिव्याप्ति दूर करने के लिए लक्षण में कालिकसम्बन्धेन' पद जोड़ना होगा? तदनुसार 'कालिकसम्बन्धेन सर्वाधारत्वे सति सर्वकार्ये निमित्तकारणत्वम्' होगा। कालिक-संबन्ध से काल सभी वस्तुओं का आधार होते हुए सभी कार्यों के प्रति निमित्तकारण है। घटाकाश आदि की तरह अतीतादि कालभेद औपाधिक ( अवास्तविक ) है। काल संख्या में एक है और व्यापक है। काल . . की गणना यद्यपि भत द्रव्यों में की जाती है परन्तु उसे अमूर्त माना जाता है। कुछ नैयायिक क्षणात्मक काल को प्रमुख मानते हैं। जैन दर्शन में काल को अणुरूप और सर्वत्र उन अणओं के वर्तमान होने . से उन्हें संख्या में अनन्त माना है। [दिशः किं लक्षणं, कतिविधा च सा ? ] प्राच्यादिव्यवहारहेतुर्दिक / सा चैका नित्या विभ्वी च / अनुवाद-(दिशा का क्या स्वरूप है और वह कितने प्रकार की है ? ] प्राची (पूर्व ) आदि (पश्चिम, दक्षिण और उत्तर ) के व्यवहार का जो कारण [ द्रव्य ] है वह दिशा है / वह दिशा एक है, नित्य है और व्यापक है।