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________________ सिद्ध-सारस्वत हमारे अग्रजकल्प आदरणीय भाईसाहब मुझे कटनी के श्री शान्ति निकेतन जैन संस्कृत विद्यालय में सुप्रसिद्ध विद्वान् श्रद्धेय पं. जगन्मोहन लाल जी सिद्धान्त शास्त्री के पास पढ़ने का सौभाग्य मिला। श्रद्धेय पं. जी प्रो. सुदर्शन लाल जी के भी गुरु रहें हैं। उस समय कटनी विद्यालय के पूर्वछात्र श्री सुदर्शन लाल जैन जी एवं प्रेमसुमन जी उच्चशिक्षा हेतु वाराणसी स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे। इन दोनों की हम छात्रों के मध्य आदर्श छात्र के रूप में चर्चा होती थी। पूर्वमध्यमा के बाद हम चार छात्रों के साथ स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी उच्च शिक्षा हेतु आए तो आते ही कटनी के पूर्वोक्त दोनों पूर्व विद्वान् छात्रों से मिलकर अच्छा स्नेह और मार्गदर्शन प्राप्त किया। वाराणसी जैसे बड़े शहर में रहकर आगे बढ़ते रहने में इनका मार्गदर्शन अच्छा सम्बल साबित हुआ। स्नातकोत्तर के बाद श्रद्धेय पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री के परामर्शानुसार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही डॉ. सुदर्शनलाल जी के निर्देशन में मूलाचार जैसे श्रमणाचार परक प्राकृत के प्राचीन शास्त्र पर शोधकार्य करने लगा। शोधकार्य हेतु गणेश वर्णी दि. जैन शोध संस्थान नरिया, वाराणसी के संस्थापक पं. फूलचन्द्र जैन जी ने आर्थिक सहयोग देने का आश्वासन दिया। किन्तु कुछ समय बाद कुछ बाधाओं के कारण प्रो. सुदर्शन लाल जी के परामर्श एवं सहयोग से उसी विषय पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक डॉ. मोहन लाल जी मेहता के निर्देशन में शोधकार्य हेतु पंजीयन करा लिया। फिर भी मुझे आदरणीय भाई साहब का प्रोत्साहन मिलता रहा। संयोग से सन् 1997 में मेरी नियुक्ति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के जैनदर्शन विभाग में प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष के रूप में हो गई। प्रो. सुदर्शन लाल जी मेरी रीडर और प्रोफेसर की नियुक्ति में एक्सपर्ट थे और उन्होंने मेरी नियुक्ति में सहयोग किया। आपकी विदुषी धर्मपत्नी एवं मेरी भाभी श्रीमती डॉ. मनोरमा जैन एक अच्छी धार्मिक गृहिणी हैं। जब मैंने देखा आ. भाभी जी बी.ए. उत्तीर्ण हैं, तब मैंने अपने विभाग से जैनदर्शन से आचार्य की पढ़ाई हेतु प्रेरित किया। तब उन्होंने जैनदर्शनाचार्य कक्षा में स्वर्णपदक के साथ उत्तीर्णता प्राप्त की। यह उनके अदम्य साहस और विद्या के प्रति निष्ठा का ही प्रतीक है। वे यहीं तक नहीं रुकीं अपितु पी-एच.डी. की उपाधि बी.एच.यू. से प्राप्त कर ली। आदरणीय भाई साहब हर दृष्टि से बड़े भाग्यशाली हैं कि उन्होंने शैक्षणिक एवं सामाजिक सभी क्षेत्रों में विशिष्ट पदों को प्राप्त किया। शास्त्रों के ज्ञान के प्रति लगाव से ही आप मात्र जैनदर्शन तक ही सीमित नहीं रहे अपितु अन्य भारतीय दर्शन के शास्त्रों में एवं प्राकृत, पालि, संस्कृत आदि प्राचीन भाषाओं एवं इनके साहित्य में भी आपने दक्षता प्राप्त की। आपने अपने पूरे परिवार को सुनियोजित तो किया ही है, साथ ही आपके अनेक छात्र आज अच्छे पदों पर अपनी सेवायें दे रहे हैं। आपको राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था, तब हमें भी सपरिवार राष्ट्रपति भवन में उस सम्मान में साक्षी बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। क्योंकि मेरे पुत्र डॉ. अनेकान्त को भी उसी समय बादरायण पुरस्कार मिला था। ऐसे महनीय वरिष्ठ विद्वान् के अभिनन्दन ग्रन्थ के अवसर पर हम अपने पूरे परिवार की ओर से आपके यशस्वी जीवन एवं दीर्घायुष्य की मङ्गलकामना करते हैं। प्रो. डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी पूर्व जैनदर्शन विभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी पूर्व अध्यक्ष, अ.भा. दि. जैन विद्वत् परिषद्
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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