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________________ सिद्ध-सारस्वत देवी और दूसरी पुण्य ज्ञानरूपी अमृत से पुष्ट करने वाली माँ भारती सरस्वती जिनवाणी। यहाँ दोनों की ही पूज्यता प्राप्त हो रही है। जैनधर्म-दर्शन के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान् प्रो. साहब के अल्पवय में ही मातृ-वियोग की स्थिति में अपने परम पूज्य पिताश्री से उच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त की और साथ ही अनेकों संस्थाओं के उच्च पदों पर आसीन होकर शिक्षासंस्थानों में शैक्षणिक सेवा देकर समाज पर बड़ा उपकार किया है। आपने अनेक शोधछात्रों को विविध प्रकार के विषयों पर डॉक्ट्रेट की उपाधि दिलवायी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी में निदेशक और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में विभागाध्यक्ष एवं कला सङ्काय प्रमुख के उत्तरदायित्वों को निभाते हुए जैन और जैनेतर विद्या के अध्येताओं को ज्ञानदान एवं मार्गदर्शन दिया है। वे अनेक संस्थाओं से गरिमामय जुड़े रहे। अनेकों सम्मान मिलकर भी उनके गुणों का समादर करने में हम असमर्थ हैं। उन्होंने साहित्यक्षेत्र में अपनी मौलिक अनुदित (अनुवादित) एवं सम्पादित कृतियों के द्वारा माँ सरस्वती के विशाल भंडार को भरा है। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व आदर्श हैं। प्रो. जी सीधे-साधे, सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होंने अपने परिवार को भी भलिभाँति श्रेष्ठ कार्यों में संयोजित किया है। भगवान् से मैं मङ्गल कामना करता हूँ कि वे स्वस्थ एवं दीर्घायु रहकर समाज का मार्गदर्शन करते रहें। वे सर्वत्र आदरणीय हों। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक माननीय सोरया जी लगभग 50 वर्षों से मेरे सम्पर्क में बड़े आदर भाव से प्रतिष्ठित हैं। इस पुनीत कार्य के लिये उन्हें हार्दिक बधाई एवं सम्पादक मण्डल एवं संयोजक डॉ. सर्वज्ञदेव जैन और प्रबन्ध सम्पादक डॉ. पंकज कुमार जैन आदि के लिये बधाई और आशीर्वाद।। वीतराग वाणी ट्रस्ट के लिए शुभकामना कि वह इसी प्रकार से अपेक्षित सामाजिक कार्यों का प्रकाशन कर शिखर पर विराजमान रहे। अन्त में प्रो. साहब के विषय में निम्न पंक्तियाँ जो सटीक चरितार्थ होती हैं उसे भी अंकित कर रहा हूँ - विद्वत्ता भूभृतश्चैव, नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते। भद्रं भूयात् शुभं भूयात् पं. शिवचरण लाल जैन, मैनपुरी संरक्षक एवं पूर्व अध्यक्ष तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासङ्ग संरक्षक- अखिल भा. वर्षीय दि. जैन शास्त्री परिषद् जैन विद्वानों की परम्परा के दैदीप्यमान भास्कर जैन विद्वानों की परम्परा के दैदीप्यमान भास्कर प्रो. सुदर्शनलाल जैन संस्कृत एवं प्राकृतविद्या के श्रेष्ठ हस्ताक्षर हैं। इन्होंने स्याद्वाद महाविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में अध्ययन करके प्रावीण्यता प्राप्त की और इनकी विशेषता रही कि अपनी ही शिक्षण संस्था में प्रवक्ता के रूप में शिक्षण कार्य प्रारम्भ किया। उसी काल में मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्रवेश लिया। सौभाग्य से डॉ. जैन को अपने शिक्षागुरु के रूप में पाया। इनके अध्यापन की शैली प्रभावी थी। हम सभी विद्यार्थी इनसे पढ़कर हमेशा प्रमुदित रहते थे। ये विषयबोध कराने में तो दक्ष थे ही साथ ही हमें हमेशा मार्गदर्शन देकर आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान किया करते थे। आज भी डॉ. साहब हमारे गुरु के रूप में ही हैं। सतत जैन विद्या के विविध आयामों पर कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। मुझे अनुजकल्प मानकर इनके द्वारा जो शिक्षाएँ दी जा रहीं हैं उनसे मैं विशेष लाभान्वित हो रहा हूँ। डॉ. जैन की सहधर्मिणी श्रीमती डॉ. मनोरमा जैन का भाभी के रूप में सदैव वात्सल्य मिलता ही रहा है। पारिवारिक और शैक्षिक कार्यों के लिए इनके द्वारा दी गयी प्रेरणा ही हमारे विकास में सहयोगी बनी है। हम अपने गुरुवर्य प्रो. जैन साहब के अभिनन्दन ग्रन्थ की अनुशंसा करते हैं और कामना करते हैं कि ये शत शरद ऋतुओं के सुमनों से सुवासित रहें तथा जैन विद्या के क्षेत्र में इनकी यश:पताका सदैव फहराती रहे। डॉ. श्रेयांस कुमार जैन अध्यक्ष - अखिल भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रि-परिषद, बड़ौत् 67
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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