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________________ सिद्ध-सारस्वत जिनप्रभुशरण एषो वरेण्यः सुदर्शनलालः / / लब्धप्रतिष्ठो लोके वैदुष्यादिगुणाचलाग्रवसतिः। समर्पितं येन निजं सुजीवनं वाङ्मयसेवने मुदा।। जीयात् स शरदां शतं सौभाग्यारोग्यकीर्तिसमन्वितः। सर्वविधैः सौख्यैरिति नः हार्दकल्याणकामना।। प्रो. कुसुम पटोरिया, डी.लिट् पूर्व प्रोफेसर, संस्कृतविभाग, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर ओजस्वी मीठी-वाणी का ज्ञान-भण्डार अग्रजवर्य प्रो. सुदर्शनलाल जी को वर्षों से जानता हूँ। आप बी.एच.यू. में संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे हैं। इनके घर पर मैंने अनेक बार भोजन किया है। पूज्य भाभी जी (आपकी पत्नी) का जीवन संयमित है। उच्च पदस्थ होते हुए भी सादा जीवन उच्च विचार आपमें अनुस्यूत रहे हैं। जयधवल पुस्तक 16 में पं. श्री फूलचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री जी के साथ हम दोनों ने संशोधक के रूप में कार्य किया है। उदयपुर में आपके आगमन पर भी आपसे मिलना हुआ है। ओजस्वी मीठी वाणी से आपके ज्ञान का भंडार सब को वश में कर लेता है। इस अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन की पावन बेला में हम दम्पती आपका अभिनन्दन एवं अभिवादन करते हैं तथा भावी जीवन मङ्गलमय हो यह भावना व्यक्त करते हैं। अभिलाषा है कि अल्पतम भव में सम्यक्त्व को प्राप्त करें तथा संयम की पूर्णता करके मुक्तिरमा का वरण करें। भद्रं भूयात् / शुभास्ते पन्थानः / / पं. जवाहरलाल जैन एवं श्रीमती कैलाश जैन मिण्डरवाले, उदयपुर आत्म- प्रशंसा से दूर समर्पित मनीषी। डॉ. सुदर्शनलाल जैन पुरानी पीढ़ी के ऐसे विरल विद्वान् हैं जिन्होंने विश्वविद्यालयीन सेवा में रहते हुए भी जैन समाज से जीवन्त सम्पर्क बनाए रखा तथा पारम्परिक विद्वान् के रूप में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं के संस्कृत, प्राकृत साहित्य का गहन गम्भीर अध्ययन कर अकादमिक समुदाय को अनेक श्रेष्ठ कृतियाँ उपलब्ध कराई हैं। यदि श्वेताम्बर परम्परा के उत्तराध्ययन सूत्र पर उन्होंने अपना शोध प्रबंध लिखा तो संस्कृत-प्रवेशिका एवं प्राकृत-दीपिका लिखकर इन भाषाओं के अध्ययन की शुरूआत करने वाले युवा विद्वानों का पथ सुगम किया। मैंने आपकी कृति देव शास्त्र गुरु पढ़ी है जो गागर में सागर है। प्रो. जैन के निर्देशन में 44 विद्यार्थियों ने पी-एच.डी सफलतापूर्वक पूर्ण की है। यह स्वयं ही एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय से 44 विद्यार्थियों को पी-एच.डी. कराना स्वयं में एक कीर्तिमान है। समाज और विद्वान दोनों में आपकी समान पेठ है तभी तो आप जहाँ एक ओर जैन समाज काशी, नरिया दिगम्बर जैन मन्दिर काशी, गणेशवर्णी संस्थान वाराणसी आदि के प्रबंधन से अध्यक्ष, मंत्री आदि पदों के माध्यम से जुड़े रहे तो दूसरी ओर अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद के मंत्री और उपाध्यक्ष के रूप में परिषद् के स्वर्णिम काल में आपने नेतृत्व प्रदान किया। म. प्र. की राजधानी भोपाल आ जाने से अब म. प्र. के विद्वान् निकट सम्पर्क में रहकर आपके वैदुष्य का लाभ ले सकेंगे। ___ मैं अपनी एवं विद्वत महासन की ओर से डॉ. जैन के अमृत-महोत्सव के पुनीत अवसर पर प्रकाशित होने वाले सिद्ध-सारस्वत ग्रन्थ के प्रकाशन की सफलता तथा प्रो. जैन के स्वस्थ, सुदीर्घ, सक्रिय एवं यशस्वी जीवन की मङ्गल कामना करता हूँ। डॉ.अनुपम जैन कार्याध्यक्ष, तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासङ्घ, इन्दौर 33
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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