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________________ सिद्ध-सारस्वत शुभाशंसा (बाधाओं के बबंडर से अविचलित प्रो.सुदर्शन लाल जैन) वीरभूभाग बुन्देलखण्ड के तेजस्वी लाल माणवक सुदर्शनलाल जैन ने वहाँ से निकल कर विद्याभूमि ज्ञानप्रकाशी काशी की यात्रा की। मार्ग में आये संकटों को सुदर्शन ने सुदर्शन चक्र की भाँति खण्डित करते हुए निरवरोध अग्रगामिता प्राप्त की। मिट्टी के ढेले को भूमि पर पटकने पर वह विकीर्ण होकर धूल में परिवर्तित हो जाता है। उसकी ऊर्ध्वगति नहीं हो पाती। युवक सुदर्शन लाल प्रतिभाप्रकर्ष और उत्साह से संबलित थे। विपत्तियों के थपेड़े खाने पर भी बिखरे नहीं, खरे उतरे, कन्दुक के समान उत्कृष्टता प्राप्त की। काशी की ज्ञानगंगा में अवगाहन किया। वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय में पारम्परिक शास्त्रों के विद्याभ्यास द्वारा प्राच्य-विद्याओं का चूडान्त ज्ञान प्राप्त किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विद्याभ्यास के द्वारा पाश्चात्त्य विद्यासरणि में कौशल प्राप्त किया। वहीं पर 38 वर्षों के दीर्घ अवधि में विद्यादान में निरत रहे। शिष्यों के अज्ञानान्धकार को दूर करना ब्रह्मयज्ञ से कथमपि न्यून नहीं ठहरता-'अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः।' अध्यापन ज्ञानदान के अतिरिक्त आपने निर्देशन, अनुसन्धान, ग्रन्थलेखन और सम्पादन कार्य भी सुसम्पन्न किये। शुभाशंसनाओं से विभूषित करते हुए मुझको पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी आप ज्ञानधारा को अग्रसारित करते रहेंगे। चिरायुष्य की कामना के साथ, पद्मश्री प्रो0 भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी 'वागीश शास्त्री' पूर्वनिदेशक, अनुसन्धान संस्थान, सं.सं.विश्वविद्याल, संस्थापक, वाग्योग चेतनापीठम
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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