________________ सन्दर्भ सूची1. जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समगणमाहणे। दत्ता भोच्चा य जिट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया।। उत्तराध्ययन 9/38 2. बौद्धदर्शन और अन्य भारतीय दर्शन, भरतसिंह उपाध्याय, पृष्ठ - 739 तथा शतपथब्राह्मण 2/2/2/6, 2/4/3/14 3. वही , , ऋग्वेद 1/37/4,3/18/3 4. वही शतपथब्राह्मण 11/5/81 बृहदारण्यक 2/4/10 एवं पुरुषसूक्त। 5. इस विषय में जैन और बौद्ध आगमग्रन्थों को देखिए। 6. उत्तरा. 25/7,8 एवं 12/11 7. औषधयः पशवो वृक्षास्तिर्यञ्चः पक्षिणस्तथा। यज्ञार्थं निधनं प्राप्ताः प्राप्नुवन्त्युच्छ्रितं पुनः // शतपथब्राह्मण // 8. यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः / 9. वैदिक संस्कृति का विकास, लक्ष्मण शास्त्री जोशी, पृ.42 10. बौ0 दर्शन और अ०भा० दर्शन, भरतसिंह पृ0 739 तथा ऋग्वेद,1/37/43, 3/18/3 11. यज्ञाद् भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः, गीता 3-14 12. उत्तरा. 12/10 13. प्रमाणवार्तिक 1/219-21,25. 14. सुत्तनिपात (पुण्णमापुच्छा)5/3 15. वाजसनेयिसंहिता 3/50, शतपथ ब्राह्मण 2/5/3/19 16. यज्ञादि से हमें स्वर्ग की प्राप्ति भले ही हो जावे परन्तु उससे परमार्थ की प्राप्ति नहीं होती है। देखिये, छान्दोग्य 1/1/10; बृहदारण्यक 1/5/16; 6/2/16 प्रश्न: 1/9; मुण्डक-1/2/101 17. कठ.1/17; 3/2, श्वेताश्वतर. 2/6-7 आदि। 18. बृहदारण्यक 1/4/10, 3/9/6,21 19. छान्दोग्य 1/12/4,5 20. देखिए, सांख्यकारिका पर गौडपादभाष्य। 21. पर्व 41, श्लोक 41 से 105 22. ले0 भरतसिंह उपाध्याय, द्वितीय भाग, पृ0 738,742,743 23. सुत्तनिपात (धम्मियसुत्त ब्राह्मण) तथा अङ्गुत्तरनिकाय-द्रोणसुते।। 24. देखिए, बौद्ध दृष्टिकोण के लिए दीघनिकाय-कूटदंतसुत्त तथा सुत्तनिपात। 25. दीघनिकाय-कूटवंतमुत्त। 26. अट्ठकथा, चंकिसुत्त, बुद्धचर्या पृ0 2241 27. उत्तरा0 25 वां यज्ञीय अध्ययन, गाथा 19 से 29 तक। 28. उत्तरा. 25/31,32 / नहाने से शुद्धि नहीं होती अपितु जो सत्य, धर्म, और शुचि से युक्त हैं वे ही ब्राह्मण है। जटिलसुतं; उदान 19 तथा वो सत्यव्रती, जितेन्द्रिय, वेदन्तगू और ब्रह्मचारी हैं वे ही यज्ञोपनीत है। संयुक्तनिकाय 7/1/9 29. उत्तरा0 25/181 30. उत्तरा0 25/30 31. उत्तरा0 12 वां एवं 25 वां अध्ययन 32. वही0 12/34 33. उत्तराध्ययन 12/42 34. वही 25/1 204