SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध-सारस्वत कुलपति द्वारा गठित इस घटना सम्बन्धी इन्क्वारी कमेटी ने मेरी भूरि-भूरि प्रशंसा की। (10) शोध पंजीयन में गलत छात्र का चनय - विभागीय कुछ अध्यापकों की शरारत ने एक ऐसे छात्र को मेरे निर्देशन में शोध हेतु पंजीयन करा दिया जो उग्र प्रकृति का था तथा शरारती भी था। बाद में पता चला कि वह किसी मर्डर केश में आरोपी भी है। सब जानते थे कि यह छात्र शोधप्रबन्ध तो लिखेगा नहीं प्रो. जैन को ही लिखना पड़ेगा परन्तु मेरी गम्भीरता सरलता तथा चतुराई से वे इस मकसद में सफल नहीं हो सके। छात्र सम्भवतः किसी अन्य से लिखवाकर ले आया जिसे मैंने परीक्षार्थ अग्रसारित कर दिया। संयोग से वह पास भी हो गया। लोगों ने मुझे बहुत भयभीत कराया परन्तु मैं अपने सिद्धान्त पर अडिग रहा। उसने भी मेरा पूरा सम्मान किया। इस तरह मैं साजिस का शिकार होने से बच गया। (11) चीफ प्राक्टर को छात्रावास में फोर्स के साथ आने पर रोका - इसी प्रकार एक बार प्राक्टर ने कहा कि आपके विडला छात्रावास के अमुक कमरों में पिस्तौल, घातक औजार आदि हैं। मैं आकर निकालना चाहता हूँ। मैंने वार्डनों को बुलाया और प्राक्टर से कहा आप अकेले या किसी अन्य साथी को लेकर आयें और तलाशी ले लेवें परन्तु फोर्स के साथ न आवें। वे बोले मैं बिना फोर्स के नहीं आ सकता, आप ही चेकिंग कर लेवें। मैंने वार्डनों को कमरा नम्बर न बताकर पूरे छात्रावास के कमरों को चेक किया और निर्देशित कमरे का विशेष निरीक्षण किया। आपत्तिजनक कोई सामग्री नहीं मिली। मेरी दृढ़ता से मामला शान्त हो गया, अन्यथा अशान्ति हो सकती थी। (12) अध्यापक को छात्र हित में समझाया - एक बार एक अध्यापक ने परीक्षा के एक माह पूर्व एक निरपराध छात्र को कक्षा में बैठने से मना कर दिया। छात्र मेरे डीन आफिस में आए। उनसे वस्तु स्थिति को जानकर तथा छात्र के भविष्य को विचार कर मैंने अध्यापक को आदेश दिया कि छात्र को कक्षा में आने दें। अध्यापक को समझाया और वह मान गए। छात्रों के हित में सदा सोचा करता था। (14) छात्रों द्वारा सम्मान छात्रों की अनेक समस्याओं को उनका गार्जियन बनकर मैं सुलझाता था। कभी-कभी छात्रावासों का निरीक्षण करता था। मैस में भी छात्रों के साथ कभी-कभी भोजन करता था। इसका छात्रों पर अच्छा प्रभाव पड़ा और सभी छात्रावासों में पहली बार मेरा सम्मान किया गया। (13) मीटिंग में पुनः जाकर छात्र को डिग्री दिलवाई - एक समय यू.जी.सी. के नियमानुसार पी-एच.डी. डिग्री वालों को एक समय सीमा तक अध्यापक की अर्हता हेतु नेट परीक्षा से मुक्ति मिलेगी, उसकी अवधि समाप्त हो रही थी। मैं अपने विभाग के अभ्यर्थियों की मीटिंग में अनुशंसा करके आ गया, परन्तु उसी समय एक बाह्य परीक्षक विलम्ब से आए। मैंने शीघ्र उस छात्र की मौखिकी सम्पन्न कराई और पुन: मीटिंग में चला गया। अन्य सङ्कायों की मीटिंग चल रही थी। उस छात्र की रिपोर्ट दी और डिग्री की अनुशंसा कराई। कुलपति ने सराहा कि छात्रों का आप बहुत हित चाहते हो। छात्र हित हेतु आ गए। (16) प्रवेश-प्रक्रिया में एक अध्यापिका का अडंगा कला सङ्काय में स्नातक कक्षा की प्रवेश प्रक्रिया चल रही थी। अन्त में जब एस.सी./एस.टी. का प्रवेश प्रारम्भ हुआ तो एक महिला सदस्या जो उनकी तरफ से प्रतिनिधि थी ने समाज विज्ञान में कम सीट होने से विरोध करके प्रवेश कमेटी से बहिर्गमन कर दिया। पूरी प्रक्रिया में वे आदि से अन्त तक बराबर थीं। उस समय कोई प्रश्न नहीं उठाया। उन्होंने महिला आयोग और एस.सी./एस.टी. आयोग में शिकायत भेज दी कि एस.सी./एस.टी. के छात्रों के साथ डीन अन्याय कर रहे हैं। यह नई सुविधा मैंने ही बहुत प्रयत्न करके प्रारम्भ कराई थी। नियमानुसार कोटा सबको मिला था। कुलपति के बाहर होने पर रेक्टर प्रो. लेले, विज्ञान सङ्काय के डीन तथा सामाजिक विज्ञान के डीन के साथ मिलकर संयुक्त मीटिंग आहूत की तथा कुलपति जी के आने पर उन्हें स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने कोई गड़बड़ी न देख एस.सी./एस.टी. के दूसरे प्रतिनिधि को नियुक्त कर दिया। तब प्रवेश-प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हो गई। विरोध करने वाली अध्यापिका ने बाद में मेरे डीन आफिस में आकर क्षमा याचना की। (15) विभागीय कुछ अध्यापकों के विरोध से विभिन्न विषयों का ज्ञाता बनासंस्कृत विभाग में कुछ अध्यापक ऐसे थे जिन्हें जैन दर्शन से नफरत थी। वे हमेशा यह चाहते थे कि जैन 140
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy