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________________ सिद्ध-सारस्वत करे। हुआ भी वैसा जैसा मैंने सोचा था। मैं सीढ़ियों से नीचे उतर ही रहा था कि 7-8 छात्रों ने मुझे घेर लिया और कहा आपने मेरे चेले को क्यों परेशान किया। मैंने भी दृढ़ता पूर्वक कहा 'मैंने उसे परेशान नहीं किया उसने मुझे परेशान किया, मैं तो उसे सुरक्षित सीट देना चाहता था जिससे उसकी और मेरी भी इज्जत बची रहती।' तब उन छात्रों ने कहा ऐसी बात है और चरण छूकर चले गए। अगर मैं बहस करता तो वे मारपीट भी कर सकते थे। मैंने राहत की सांस ली और घर चला गया। ऐसे मौकों पर घबराना नहीं चाहिए अपितु विवेक एवं सूझबूझ से सामना करना चाहिए। (8) परीक्षा-संबन्धी अन्य घटना एक बार एक छात्र नेता आया और मुझसे परीक्षा में आने वाले महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की जिज्ञासा प्रकट की। उसे मैं पहचानता तो नहीं था परन्तु उसके हावभाव से समझ गया था कि यह छात्र नेता है और इसे पता है कि मैंने पेपर बनाया है। मैंने सोचा और कहा अभी मैं व्यस्त हूँ, सात दिन बाद आना। वह चला गया परन्तु मुझे उद्वेलित कर गया। यदि सही जानकारी देता हूँ तो अपराध होगा और यदि गलत बतलाता हूँ तो हमारे साथ अभद्रता कर सकता है। मैंने विभागाध्यक्ष से कहा कि जब अमुक शिक्षक कक्ष में हों तब यह कह देना कि जैन का पेपर मॉडरेशन में बहुत अधिक बदलना पड़ा। उन्होंने वैसा ही किया। वह बात उसे शिक्षक के माध्यम से उसके पास पहुंच गई और वह पुनः मेरे पास नहीं आया। इस तरह मेरा उस समय संकट टल गया। परीक्षा के बाद उसने सात-आठ छात्रों के साथ मुझे घेर लिया और धमकी दी कि गुरूजी 80 प्रतिशत से कम अंक नहीं मिलना चाहिए। मैंने उस घड़ी की नजाकत को समझकर उसका रोल नं. पूछ लिया और उसने तुरन्त अपना रोल नं. दे दिया।। मैंने पुनः विभागाध्यक्ष से निवेदन किया कि इस रोल नं. वाली उत्तरपुस्तिका मेरे पास न आवे। उन्होंने परीक्षा विभाग को ऐसा संकेत कर दिया। परिणाम स्वरूप वह उत्तरपुस्तिका मेरे पास नहीं आई। और मैं बच गया। वैसे वह मेरे पास आया और बोला यदि नं. अच्छे नहीं मिले तो लोहे की कसम मैं आपको नहीं छोडूंगा। मैंने भी निडरता पूर्वक कहा 'तुम सामने से वार नहीं कर सकते और यदि भगवान की कृपा होगी तब भी तुम पीछे से वार नहीं कर सकोगे।' इधर मैंने उसके प्रिय अध्यापक से कहा कि भाई आपका चेला मुझे धमका रहा है। उन्होंने समझ लिया कि यदि वह कुछ करेगा तो मैं भी फसूंगा। फलत: अपने गुरु के कहने पर वह माफी मांगने आया और पैरों पर गिर पड़ा। (9) विश्वविद्यालय को अनिश्चितकालीन बन्दी से बचाया जब मैं डीन था तब कला सङ्काय और मेडिकल सङ्काय के छात्रों में मारपीट हो गई। झगड़ा बढ़ जाने पर कुलपति राव ने पुलिस बुला ली तथा फोन करके मुझे कुलपति आवास में बुला लिया। रात्रि के 10 बजे थे। प्राक्टर, छात्र-अधिष्ठाता तथा शारीरिक विज्ञान के एक अध्यापक को भी बुला लिया। पूरी रात वहीं रुके और भोर में चार बजे तक घर आ सके। कुलपति ने निर्णय लिया कि विचाराधीन अपराधी पांच में से चार छात्रों की एफ.आई.आर. लिखा दी जाए। मेरे से भी हस्ताक्षर करा लिए जबकि मैं उस घटना से अनभिज्ञ था। मैंने यह जरूर कहा कि आपके कहने से मैंने हस्ताक्षर जरूर कर दिए हैं परन्तु मुझे सोचने का मौका दें। प्रात: आपसे पुनः मिलूंगा। मैंने सोचा एक को क्यों छोड़ा गया। मैं अपने सङ्काय के छात्रों के अहित से बेचैन था। मैंने छात्र-अधिष्ठाता को फोन किया और वस्तुस्थिति बतलाई। संयोग से वो भी मेरे से सहमत हो गए। हम दोनों प्रात: कुलपति जी के पास गए और अपनी अहसमति बतलाई। उन्होंने कहा ठीक है, आपका नाम हटा देंगे। पर हटाया नहीं, फाइल में रखा रहने दिया। घटना के मद्देनजर जब मैंने कुलपति से कालेज खुला रखने बावत पूंछा तो कुलपति जी ने कॉलेज खुला रखने का आदेश दिया परन्तु मैंने अपने सभी विभागाध्यक्षों की मीटिंग करके कालेज बन्द कर दिया। परिणाम यह हुआ कि छात्रों का गुट आया जरूर परन्तु बन्दी देखकर बिना नुकसान किए चला गया। इस तरह अपने सङ्काय को बचा लिया परन्तु झगड़ा शान्त नहीं हुआ था। कुलपति ने पुलिस फोर्स बुलाकर हमारे सङ्काय के विडला छात्रावास को चारों ओर से घेर लिया। छात्र भी आक्रोशित होकर पत्थरबाजी करने लगे। मुझे बुलाया गया कि आप छात्रों को शान्त करो अन्यथा हम छात्रावास में प्रवेश करेंगे। मैंने अपने चारों वार्डनों के साथ छात्रावास में प्रवेश किया। बच्चों का समझाया उन्होंने पुलिस हटाने की मांग रखी। मैंने उसे सही समझा और प्राक्टर तथा पुलिस प्रशासन से 200 मीटर दूर चले जाने को कहा। वो तैयार नहीं हुए तो मैंने कहा फिर मुझे क्यों बुलाया। शान्ति चाहते हैं तो जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करें, अन्यथा आप जाने। इतना स्पष्ट उत्तर पाकर उन्होंने पीछे हटने की बात मान ली। छात्र भी आश्वस्त होकर पत्थरबाजी से विरत हो गए। इस तरह विश्वविद्यालय को साइनडाई (अनिश्चित कालीन बन्दी) होने से बचा लिया। अन्यथा पुलिस फोर्स छात्रावास में जाकर मारपीट, लूट आदि करती और छात्र आगजनी करते। 139
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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